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________________ छः द्रव्यों का उपकार द्रव्य धर्म अधर्म आकाश जीव पुद्गल काल कार्य गति स्थिति अवगाहना परस्पर एक | शरीर वाणी मन वर्तना, परिणमन, दुसरे का श्वासोश्वास क्रिया, परत्व उपकार सुख दुख अपरत्व जीवन मरण | किस द्रव्य जीव और जीव और । सभी द्रव्यों । जीव का जीव पर | सभी द्रव्यों पर पुद्गल पर पुद्गल पर | पर जीव पर पर स्पर्श-रस-गन्ध-वर्णवन्तः पुद्गलाः ।।23|| सूत्रार्थ : स्पर्श, रस, गंध और वर्णवाले पुद्गल होते हैं। शब्द-बन्ध-सौक्ष्म्य-स्थौल्य-संस्थान-भेद-तमश्छाया-ssतपोद्योतबन्तश्च ||24|| सूत्रार्थ : तथा वे शब्द, बन्ध, सूक्ष्मत्व, स्थूलत्व, संस्थान, भेद, अन्धकार, छाया, आतप और उद्योत वाले भी होते हैं। विवेचन : पुद्गल के मुख्य चार गुण है- स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण। पुद्गल के प्रत्येक परमाणु में ये चारों गुण होते हैं। इन चार गुणों के परिणमन स्वरूप पुद्गल के बीस गुण होते हैं जो इस प्रकार है - अजीव गुण प्रमाण ४. स्पर्श गुण स्पर्श : जो स्पर्श किया जाता है तिक्त रस उसे स्पर्श कहते है। यह आठ प्रकार का हैं - 1. कठीन (कठोर), 2. कोमल (मृदु), 3. भारी (गुरू), 4. हल्का (लघु), 5. शीत (ठंडा), 6. उष्ण (गर्म), 7. चिकना (स्निग्ध), शीत और 8. रूखा (रूक्ष)। रस : जो स्वाद रूप होता है उसे WA रस कहते हके। यह पाँच प्रकार का हैं - 1. तीखा (तीक्त), 2. कडवा (कटु), 3. कसैला (कषाय), 4. खट्टा (अम्ल) और 5. मीठा (मधुर) स्निग्ध कर्कश सक्ष रस रसना मधुर रसा कटु रस ३.रस गुण
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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