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________________ से ढक दिया जाय तो वह सम्पूर्ण प्रकाश पात्र के अल्प क्षेत्र में ही सीमित होकर रह जायेगा । इसी प्रकार जीव- प्रदेश भी छोटे-बडे शरीर के अनुसार संकोच और विस्तार कर लेते है। एक द्रव्य सर्व द्रव्य धर्म समस्त लोक में समस्त लोक में (तिल में (तिल में तेल जैसे) तेल जैसे ) संपूर्ण लोकाकाश लोक में द्रव्यों का रहने का स्थान अधर्म जीव | संपूर्ण लोकाकाश दीपक की तरह प्रदेश संकोच विस्तार शक्ति । आकाश जीव और पुद्गल के आकाश के अल्प प्रदेशों में रहने का कारण द्रव्यों के कार्य और लक्षणः गति - स्थित्युपग्रहौ धर्माऽधर्मयो- रूपकारः ||17|| जीव लोक के असंख्यातवां का भाग (सभी जीव ) संपूर्ण लोकाकाश (केवली समुदघात) S01-12 संपूर्ण लोकाकाश पुद्गल एक प्रदेश (अणु और सूक्ष्म स्कन्ध) संख्यात प्रदेश असंख्यात प्रदेश अनंत प्रदेश संपूर्ण लोकाकाश पुद्गल ★ सूक्ष्म परिणमन होने की शक्ति । ★ एक दूसरे को अवगाह देने की शक्ति । ★ व्याघातरहितता । सूत्रार्थ : गति और स्थिति में निमित बनना क्रमश: धर्म और अधर्म द्रव्यों का कार्य है। विवेचन : इस सूत्र में धर्मा और अधर्म के गुण व लक्षण बताये गये हैं। धर्मास्तिकाय : जो जीव और पुद्गल की गति (चलने) में उदासीन भाव से सहायक होता है
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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