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________________ ६३ समय देशना - हिन्दी वह प्रमाण किया क्या ? एवं आगम ये तीन बातों का ध्यान रखना। क्योंकि हम अपनी कन्या को भी किसी के कर में सौपते हैं तो कुल को पहले देखते हैं। नीतिग्रन्थों में लिखा है कुलवंत पुरुष को चाहिए कि कन्या को कुएँ में डाल दे, पर कुलहीन विधर्मी के हाथ में नहीं दे । यह नीति बोल रही है, पर आप कुएँ में डाल मत देना । हे ज्ञानी ! तुम कन्या का कर भी कुलवंत के हाथ में देते हो, तो तीर्थंकर कह रहे हैं कि हम जिनवाणी भी कुलवंत के हाथ में ही सौंपते हैं, हीनकुल वालों को नहीं देते हैं । "दे से कुल - जाई - सुद्धा" यह आचार्य कुन्दकुन्द की गाथा है। इधर-उधर मत कर देना । ध्रुव सत्य है, वंश का प्रभाव पड़ता है । गोम्मटसार- कर्मकाण्ड में हिन्दी टीका में एक कथा दी है, पंचतंत्र से ली है। वंश का कैसा प्रभाव है ? श्यालनी की मृत्यु हो गई, सिंहनी को करुणा आ गई, उसने बच्चे को अपना दूध पिलाकर पाल लिया । सिंहनी का भी बच्चा था। जब दोनों बड़े होने लगे, एक दिन जंगल में क्रीड़ा कर रहे थे। वंशस्वभाव से हाथी को देखा सिंहनी के बच्चों ने तो वे दौड़ पड़े, पर स्याल ने पकड़ लिया 'नहीं। बहुत बड़ा है। अपन को कुछ नहीं करना ।' दोनों बच्चे रोते हुए के पास पहुँचे, बोले- 'माँ ! मेरे भइया (स्याल के बच्चे) ने मेरी वीरता को छीन लिया ।' माँ को दया आ गई, कि मैं अभी कुछ कहती हूँ तो ये सिंह के बच्चे हैं, स्याल के बच्चे को मार देंगे । बोली- आप जाओ, मैं समझा दूँगी । बुलाती है स्याल के बच्चे को एकान्त में । 'बेटे ! अब तुम यहाँ से भाग जाओ ।' क्यों माँ ? 'जिस कुल में तुम जन्मे हो, उस कुल में दन्ति (हाथी) के गंड स्थल का भेदन नहीं होता है। तो माँ जिनवाणी कह रही है वेटे ! तुम भाग जाओ, जिस कुल में दन्ति यानि इन्द्रियों का दमन नहीं होता है, वे कुल वाले भगवान् नहीं बनते हैं। जिन कुल में दन्ति का दमन होता है, उस कुल वाले ही भगवान् बन पाते हैं । हीन कुल वाला इन्द्रियों पर विजय प्राप्त नहीं कर पाता, ये विश्वास रखना । निम्न वर्ग के लोग अशुभ करते ज्यादा देखे जाते हैं। अपवाद मार्ग सब जगह है, लेकिन प्रचुरता निहारिये । इसी प्रकार से जिसका वंश शुद्ध होगा, वह शुभ ही ज्यादा करेगा। रक्त की शुद्धि जीव के चित्त को प्रभावित करती है। ये दृष्टान्त क्यों दिया गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) में ? क्यों कर्मकाण्ड में कर्मप्रकृति का वर्णन है । उच्च गोत्र व नीच गोत्र का वर्णन किया जा रहा था। सिद्धांत शास्त्रों में उच्च गोत्र उसे ही कहा है, जिस गोत्र में जैनेश्वरी दीक्षा ली जाती है । जिस गोत्र में जैनेश्वरी दीक्षा लेने की पात्रता नहीं है, वही नीचगोत्र है । इस प्रकार दो बातों पर विशेष ध्यान रखना । आगम और तर्क यहाँ दो शब्द क्यों रख दिये ? आगम, तर्क इनको और समझ लो । आगम के साथ तर्क शब्द का प्रयोग किया है। पहले तर्क शब्द का प्रयोग क्यों नहीं है, पहले आगम शब्द का प्रयोग क्यों किया ? युक्ति अनुसार आगम अर्थात् आगम के अनुसार तो तर्क होना चाहिए, पर तर्क के अनुसार आगम नहीं लगाना । आगम के अनुसार तुम्हारा तर्क स्वीकार है । और जिस तर्क में आगमन हो, वह तर्क नहीं, तर्काभास है । हमारे जिनागम में तर्क प्रमाण है, मुझे तर्क से तर्काभास का निर्णय करना चाहिए, न कि तर्क से आगम को तोड़ना चाहिए। आज विपरीत हो रहा है, हम तर्कों से आगम को तोड़ना सीख रहे हैं। पहले तर्कशास्त्र तो पढ़ो। जिनको तर्क का ज्ञान नहीं है और कलम चलाना सीख रहे हैं, उनका हर लेख विवाद से ग्रसित है। क्योंकि तर्क से आगम को बैठाया जाता है और जो तर्क नहीं जानते वे आगम को बैठा नहीं पाते हैं, इसलिए तुम्हारा लेख विवाद में आ जाता है। हमारा तर्क आगम की सिद्धि के लिए होता है, पर हम अपने ही तर्कों से अपने ही आगम को तोड़ देते हैं । आचार्य भगवान् वीरसेन स्वामी ने 'धवला' जी में लिखा है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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