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________________ ६४ समय देशना - हिन्दी आगमोऽतर्कगोचरा । आगम पर तर्क नहीं चलते है (तर्क के लिए आगम चाहिए पड़ता है ।) तो आचार्य भगवान् समन्तभद्रस्वामी "देवागमस्तोत्र'' में आगम में लिखते है,जो कथन होता है, वह वस्तुस्वभाव का ही होता है। यदि विभाव का भी कथन है तो वह भी विभाव-स्वभाव का ही कथन है। विभाव भी वस्तु का स्वभाव है। कौन-सा विभाव ? विभाव स्वभाव । स्वभाव वस्तु का स्वभाव है । कौन-सा ? स्वभाव-स्वभाव। स्वभाव पर तर्क नहीं लगता - शुद्धयशुद्धी पुनः शक्ति ते पाक्यापाक्यशक्तिवत् । साधनादी तयोर्व्यक्ती स्वभावोऽतर्कगोचरः ॥१०० आप्त मीमांसा ॥ जैसे पाक्य-अपाक्य दो शक्तियाँ है, भव्य-अभव्य । अभव्य यानी अपाक्य । शुद्ध शक्ति, अशुद्ध शक्ति ये जीव में दो शक्तियाँ हैं। भव्य जीव में शुद्ध शक्ति होती है और अभव्य जीव में अशुद्ध शक्ति ही होती है। कैसे? जैसे पकने की शक्ति है, वह मूंग और जिसमें पकने की शक्ति नहीं है, वह ओना (ठर्रा) मँग । ऐसा क्यों ? अब प्रश्न करो, क्या भव्य कभी अभव्य होगा ? नहीं। अभव्य कभी भव्य होगा ? नहीं। क्यों? 'स्वभावोऽतर्क गोचरा:' ये स्वभाव ही है। अग्नि गर्म क्यों ? पानी शीतल क्यों ? अरे, ये तो स्वभाव है। आगम पर तर्क नहीं चलता, क्योंकि आगम में स्वभाव का कथन होता है। स्वभाव में तर्क नहीं चलता। आचार्य कुन्द-कुन्द ने प्रवचनसार ग्रन्थ में लिखा- तीर्थंकर का गमन व ठहरना, स्वभाव से होता है, किसी से प्रेरित होकर नहीं होता। कैसे ? जैसे कि स्त्रियों का मायाधर्म । बताओ, कुन्द-कुन्द स्वामी आपसे रूठे थे क्या ? नहीं। कुन्द-कुन्द देव आपसे रूठे नहीं थे। जैसा स्वभाव था, वैसा ही व्याख्यान कर दिया है । आप बताओ ऐसा होता है कि नहीं? घर में दस दिन का नमक रखा है, फिर भी कहती हैं कि खत्म हो गया, लेकर आओ। एक नमक की डली के पीछे अपने सत्यधर्म को नष्ट कर रहे हो। ऐसी गृहस्थी न चले, परिवार के पीछे कर्मो का परिवार क्यों बसा रहे हो? लेकिन पुरुषों को भी चाहिए कि आपके निमित्त से कोई कर्म का बन्ध न करें, पहले से ही लाकर रख देना चाहिए। प्रश्न किया- अभिप्राय तो अच्छा है। आपने ठीक कहा, पर अभिप्राय ही अच्छा नहीं है, क्योंकि अभिप्राय तेरा गड़बड़ हो गया। जब बोला था, तब तुम्हारे ज्ञान में रखा था कि शक्कर रखी है। परद्रव्य के पीछे तू अपने धर्म से दूर हो रहा है। अभिप्राय बस्ती का है, निज की बस्ती का नहीं है, इसलिए अभिप्राय अच्छा नहीं है। बड़ा गंभीर है। अच्छा-सा लगता था, पर फल अच्छा कहाँ था। प्रश्न- साधु की वैयावृत्ती के हिसाब से मायाचारी करना पड़े तो दोष लगेगा? उत्तर- ध्यान दो, व्यवहारिकता भिन्न विषय है, परमार्थता भिन्न विषय है । पाँच पाण्डवों में दो का अभिप्राय कितना अच्छा था, लेकिन फिर भी उनके उस अच्छे अभिप्राय ने भी उनका अच्छा नहीं होने दिया । विकल्प 'पर' का हो गया। हमें परमात्म दृष्टि को स्पष्ट करना है। किसी के मायाचारी का निमित्त भी नहीं बनना, और मायाचारी भी नहीं करना। घर में पहले से ही व्यवस्था बना देना, जिससे झूठ न बोलना पड़े। आपने आचार्य अमितगति स्वामी का 'योगसार प्राभृत' पढ़ा होगा। उसे जरूर निहारना। प्रश्न- लोकाचार तो मायाचारी का पिण्ड है ? उत्तर - इसमें किंचित भी संशय नहीं है। आचार्य अमितगति ने लोकाचार और लोकोत्तराचार दो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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