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अवहेलना
समय देशना - हिन्दी
६२ सबसे प्रमाणिक कोई पद है तो मुनिपद है, क्योंकि हमारे आगम में सर्वत्र लिखा है 'नान्यथामुनिभाषणं"। हम लोग मुनि के वचनों को भगवान् के वचन मानते हैं। और कोई ऐसा ऐरा-गैरा मुनिपद को प्राप्त हो गया, जिसने मुनिवेश तो धारण किया, पर अपने पूर्व संस्कारों को नहीं छोड़ा, वह समाज में आयेगा तो ध्यान रखना, विद्वान् से इतना भ्रमित नहीं होंगे, क्योंकि सबको मालूम है कि विद्वान् तो विद्वान् है, गृहस्थ है, ऐसा बोल देंगे। पर महाराज ने जो कहा है उसे मानेंगे। आज सम्हलकर मुनि बनाना है। आज सबसे ज्यादा एकांत जो फैला है, वह एकांतपक्ष में चलनेवाले मुनिराजों से फैला है। उन्होंने बहुत पुष्टि की, क्षेत्र बदल दिये। जाओ सोलापुर तरफ, वहाँ एकान्त का प्रचार मुनिराजों ने किया है। इसलिए फिर मुझे लगा कि जिन्होंने इन्हें दीक्षा दी, उन्हें पता करना चाहिए था कि इनकी पुरानी धारा क्या है, नहीं तो समाज भटक जाती है, क्योंकि हम 'नान्यथामुनिभाषणं" पर चलते हैं और हमको डर लगता है, दिगम्बर समाज को बड़ा डर लगता है, इस बात का कि मेरे द्वारा मुनिराज की अवहेलना न हो जाये, और लगना ही चाहिए । ज्ञानी! मुनिराज की
ना न हो जाये इतना तो ध्यान रखना पर आगम की अवहेलना न हो जाये इसका भी ध्यान रखना |उनकी आराधना बराबर करना, पर यह देख लेना कि उनके वचन आगम अनुसार ही हैं कि नहीं। अन्यथा ये समय है, इस पर ध्यान नहीं दिया, तो अट्ठारह हजार वर्ष तक वीतराग शासन को सुरक्षित लेकर कैसे चलेंगे? आप क्या करते हो, क्या कहते हो, इससे मेरा प्रयोजन नहीं है। पर बताओ कि पूर्वाचार्यों ने क्या कहा, उसके अनुसार कहिए। विश्वास रखना, एक अज्ञानी-से-अज्ञानी भी जीव होगा, आप वक्ता होंगे, पर सच्चा श्रोता भी है। वह कहना जाने या न जाने, लेकिन आप किंचित भी चूक करोगे, तो वह टोकना जानता है। यहाँ कुछ गड़बड़ किया है, समझता है वह, क्योंकि उसने कई वक्ताओं को सुना है। आप जिनवाणी को कठोर शब्दों से भी बोल रहे हो न, तब भी लोग शांति से सुनते रहेंगे, क्योंकि ठीक है, मेरे अनुसार नहीं बोल रहे, पर आगम तो बोल रहे है। इसलिए आचार्यों ने कहा वाचनिक परीक्षा, शारीरिक परीक्षा और मानसिक परीक्षा । मानसिक परीक्षा कैसे व्यक्ति की सिद्धि करता है? जिसका स्तर निम्न है, उसका चिन्तन भी निम्नता की ओर जाता है। आपगा यानी नदी। नदी का नाम निम्नगा भी है और निम्ना भी है। नदी जहाँ से निकलती है, वह छोटी जगह है। ऊँचे से नीचे गिरती है, इसलिए इसका नाम निम्ना है। ज्ञानियो ! जिसका मन निम्ना है, वह खारे समुद्र में ही मिलता है। जो ऊँची चोटी से गिरे, वह नीचे बहकर समुद्र में मिले । जिसका मन निम्ना है, वह नीचे ही सोचता है।
आपने आज तक गौर नहीं किया है कि जैन साधु, जैन तीर्थंकर पर्वतों की चोटी पर तपस्या करते मिले हैं। नदी के किनारे जैनतीर्थ बहुत कम मिलेंगे। वैसे बहुत होते नहीं हैं। क्यों? यह वीतरागता का धर्म है, इसमें बहने का मार्ग नहीं है ।ये तो तपस्या से शुष्क होते हैं। जिनको जल ढारने की आवश्यकता होती है, वे नदी के किनारे बसते हैं। कर्मों को गीला करना है, कि सुखाना है ? यही कारण है कि तीर्थंकरों ने पर्वतों की चोटी पर तपस्या की है, क्योंकि हमें गीले नहीं होना, हमें सूखना है। ये निम्नगा मार्ग नहीं है, वह शिखरशेखर का मार्ग है। समझते जाओ। त्रैलोक्य चूड़ामणि (तीनलोक के चूड़ामणि) बनना है तो निम्नगा होकर नहीं बन पाओगे। उत्कृष्टता की ओर जाने के लिए तीन हेतु दिये आचार्यों ने (१) साम्यभाव (२) गुरुप्रसाद (३) आगम। तुम्हारे वचनों की प्रामाणिकता यह कि जिसे आप कह रहे हो, उसका स्वयं आचरण कर रहे हो कि नहीं। स्वानुभव करना।
जो तुम आचरण कर रहे हो, वैसा और किसी ने किया क्या ? गुरुप्रसाद, जो तुम्हारे गुरु ने कहा है
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