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________________ ३७ समय देशना - हिन्दी संभाल कर रखो । घ्राण इन्द्रिय के बिना भी तेरा मोक्षमार्ग नहीं बनता। क्या शुभ है, क्या अशुभ है, इससे पाँचों इन्द्रियों की भोगों की अनुभूति लेता है। काम-विकार बाद में सताते हैं, पहले तू घ्राण इन्द्रिय से सूंघसूंघ के विकारों की वृद्धि करता है। तब तेरी घ्राण इन्द्रिय ने नीचे गिरा दिया। और यही घ्राण इन्द्रिय कहती है कि कहीं सुगन्धित वायु बह रही है, कहीं जिनालय से पूजन की गंध आ रही है, भगवान् के दर्शन करने चलो। आचार्य कुन्द-कुन्द के 'समयसार' को कुछ शब्दशास्त्रियों ने सुधारने की कोशिश की तो आचार्य विमलसागर महाराज ने स्पष्ट मना कर दिया । आप व्याकरण से शुद्ध तो कर लोगे, लेकिन व्याकरण से कुन्द-कुन्द की मधुरता को नहीं भर पाओगे । व्याकरण से आचार्य कुन्द-कुन्द की गाथा में कुछ अशुद्धि नहीं है। जब वैदिक ऋचाओं का एक भी वर्ण, एक भी स्वर न बदला गया, न बदला जा सकता है तो प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग ये हमारे वेद-वचन हैं , फिर इनमें परिवर्तन कैसे किया जा सकता है । आपको शुद्ध करना है, तो आप अपना स्वतंत्र ग्रन्थ बनाकर खूब शुद्ध बनाओ, लेकिन कुन्दकुन्द की गाथा पर कलम चलाने का अधिकार तुम्हें नहीं है। अब नया बनाओगे क्या? पिसे को ही पीसोगे। जितने भी बना रहे हैं वे पिसे को ही पीस रहे हैं। क्योंकि जो तुम अपना बनाओगे, उसे हम अपना मानेंगे नहीं। ऐसा जिनेन्द्रदेव का उपदेश है। निश्चय से प्रत्येक द्रव्य निज द्रव्य गुण, पर्यायरूप परिणमन करता है । जगत में कोई भी द्रव्य अपने 'समय' से भिन्न नहीं होता। समय यानी काल । जो समय है, वह भी अपने समय पर कार्य कर रहा है। लगता है कि पर कर्ता है, परन्तु होता वही है, जो होना होता है। भटकना नहीं। घड़ी अपने चतुष्टय में सुसमय में चल रही थी, वह उतरकर नहीं आई कि चलो, रोटी सिका दो । अग्नि ने रोटी कब बनाई ? अग्नि अपने स्वभाव धर्म में जल रही थी, उसने रोटी बनाई कब है ? अग्नि अपने चतुष्टय में थी, उसने कुछ नहीं किया । तवा ऊपर रखा था। आपने आटे में पानी डाल दिया था, परन्तु पानी आटा बना ही नहीं, वह भी अपने चतुष्टय में था। कुछ भी कोई कर नहीं रहा था, फिर भी हो रहा था। रोटी बन गई, बताओ रोटी बनाई किसने ? हे रागियो ! प्रत्येक द्रव्य अपना ही कार्य कर रहा था, कार्य किसी ने किया नहीं, परन्तु परनिमित्तों के बिना कार्य हुआ नहीं। पर ने किसी का कार्य किया नहीं, अग्नि ने अपने धर्म को छोड़ के रोटीरूप कार्य किया नहीं। वो घड़ी कभी रोटी बनी नहीं। कार्य होता स्वयं में है, तुम कर्त्ता बनते पर में हो । ये भूल तेरी है। कार्य होता निज में है, पर कर्त्ताभाव निज में है। तुम कर्त्ताभाव के ही कर्ता हो सकते हो, परद्रव्य के कर्ता नहीं होते। आप रोटी के कर्ता थे, कि आप रोटी के रागभाव उपयोग के कर्त्ता थे? जब तू अपने उपयोग का कर्ता था, तो फिर क्यों रोटी-रोटी चिल्लाता है? उपयोग को ही खा लेता। तत्त्व सोनगढ़ी नहीं होता है, तत्त्व सभी गणों का होता है । परमागम कोई गणों का नहीं है, ये परमागम आत्मगण का है। आपको शुद्ध दूध नहीं दे रहा हूँ, क्योंकि पचाना कठिन होता है। इसलिए शुद्ध समयसार पचाना कठिन है। अपने अन्दर की बात बता न पाये, पर स्वाद तो आता है। गूंगा व्यक्ति पेड़े खाये, बता नहीं पा रहा, पर स्वाद तो ले रहा है। एकीभाव से अपनी गुण-पर्याय में गमन करते हैं। यहाँ पर एकएक धातु के दो-दो अर्थ लेकर चलना । गम धातु ज्ञान अर्थ, गम धातु भिन्न अर्थ । यहाँ एकीभाव पर्याय को प्राप्त होते हैं, ऐसा अर्थ होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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