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________________ ३८ समय देशना - हिन्दी शब्द बोलते नहीं कि मेरा यह अर्थ है, यह नहीं है। रागी-द्वेषी जैसा अर्थ निकाल देते हैं, वैसा कथन हो जाता है, परन्तु शब्द अपने आपमें मौन होते हैं। शब्द तो कुलवंती कन्या है। जिसके हाथ में पिता ने सौंप दिया है, जीवन उसके हाथ है । शब्द कुलवंती कन्या है, जैसा अर्थ वक्ता ने निकाल दिया, वैसा सामने है।। शब्दानामनेके ऽर्थाः, धातुनामनेकेऽअर्थाः । एक शब्द धातु के अनेक अर्थ होते है। मोक्ष जाने के लिए कुछ नहीं सीखना पड़ता, पर जिनवाणी का अर्थ करने के लिए, तत्त्वों को स्फुटित करना है, तो आपको बुद्धि को विकसित करना पड़ेगा। एक समयसार को पढ़ाने के लिए कई बार समयसार को पढ़ना पड़ता है। समयसार प्रासाद है, आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी की टीका कलश है और आचार्य जयसेन स्वामी की टीका-ध्वजा है। कलश के बिना, ध्वजा के बिना मंदिर शोभा नहीं देता, और नींव ही नहीं होगी तो कलश किस पर चढ़ाओगे? जैन कुल में जन्म लेकर वस्तु की स्वतंत्रता को नहीं समझे, तो आपका जन्म लेना व्यर्थ है। आपने पूजा की, स्वाध्याय किया, गुरुओं की सेवा की, पर वस्तु की स्वतंत्रता को नहीं समझा तो सब व्यर्थ है। आज घर-घर में झगड़े क्यों हो रहे हैं? मैंने अनुभव किया कि वस्तु-स्वतंत्रता का भान नहीं है । जिसे वस्तु स्वतंत्रता का भान हो जाये, वह झगड़ता नहीं है। || भगवान् महावीर स्वामी की जय ॥ qqq सुदपरिचिदाणुभूया सव्वस्स वि काम भोगबंध कहा। एयत्तस्सुवलंभो णवरि ण सुलहो विहत्तस्स ॥४ स.सा. ॥ आचार्य भगावन् कुन्दकुन्द स्वामी 'समयप्राभृत' ग्रन्थ में परम तत्त्व की व्याख्या कर रहे हैं। वह परमतत्त्व परभावों से पूर्ण भिन्न है। लोक में अनेक तत्त्वों की व्याख्या है। किसी ने पच्चीस तत्त्व को कहा, किसी ने सोलह, किसी ने नौ की व्याख्या की। वीतराग जिनशासन में सात तत्त्व हैं, उनमें परम तत्त्व कोई है तो जीवतत्त्व है। मोक्ष भी ध्रुव तत्त्व नहीं है, क्योंकि वह उत्पन्न होता है। शाश्वत तत्त्व कोई है तो जीव है, जो संसार में भी रहता है, मोक्ष में भी रहता है । मोक्ष तत्त्व तो परभावों से भिन्न निजभावों में होना है । निजभाव त्रैकालिक है । जो पर भावकर्म है, वे हमारी आत्मा में "अनादि सम्बंधे च'' अनादि से बद्ध है । उनको निज पुरुषार्थ से भिन्न या पृथक् कर देना मोक्ष है । पर जब बन्ध का विच्छेद नहीं हुआ , तब भी हमारी आत्मा के ध्रुवत्व का विनाश तो नहीं है । मेघों के आच्छादित होने से सूर्य का विनाश नहीं होता है। आपको विश्वास होता है कि मेघ हटेंगे और सूर्य का प्रकाश होगा। मनीषियो ! कर्म-मेघ हटेंगे, तो कैवल्यसूर्य प्रकट होगा, इसमें संदेह नहीं करना । वह ध्रुव सत्ता स्फुरायमान है, जाज्वल्यमान है; पर जलती नहीं, जलाती नहीं। वह ध्रुव सत्ता तेरे चित् पिण्ड चैतन्य की है। उस सत्ता को निहारने के लिए ही सब संतों का प्रयास है। उस निज सत्ता को भूल गया तो तेरा सत्यानाश है। बुरा तो नहीं लगा? इसलिए छोड़ दीजिए, आ जाइये अपने निज चैतन्य पर । नेत्रों के विषयों को देखना बन्द कर दीजिए। नेत्रों से तो वर्ण ही दिखेगा। नेत्र नीले, पीले, लाल आदि को ही देखेंगे। उससे अलग है तेरा ध्रुव चैतन्य आत्मा। छः द्रव्यों से रहित लोक नहीं, लोक से रहित निज लोक नहीं, निज लोक से रहित यह लोक नहीं। निज लोक का अवलोकन करना ही लोक For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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