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________________ समय देशना - हिन्दी ३६ है ? क्या कारण है ? विषयों का अभाव हो गया। हे मुमुक्षु ! इन्द्रियाँ किसी को विषयों में प्रेरित कभी नहीं करती । लोग गलत बोलते हैं, कि इन्द्रियाँ प्रेरित करती हैं । इन्द्रियाँ किसी को प्रेरित नहीं करती। पाँच इन्द्रियाँ मन सहित नहीं होंगी, तब तक निर्वाण नहीं मिलेगा। पंचेन्द्रिय जीव का ही निर्वाण होता है, एकेन्द्रियादिक जीवों का नहीं । इन्द्रियाँ संसार का निर्माण नहीं करती, वह तो मोक्ष / निर्वाण की ओर ले जाती हैं । लेकिन जो इन्द्रियों का दुरुपयोग करता है, ऐसी आत्मा ही संसार का भोग करती है । इन्द्रियों ने भोगी बनाया, संज्ञा इन्द्रियों की है कि आत्मा की ? इन्द्रियों में संज्ञा नहीं होती है, संज्ञाओं से इन्द्रियाँ संचालित होती हैं । इन्द्रियों में संज्ञा हो जायेगी तो संज्ञाओं से हमें काम करना ही पड़ेगा, तो किसी भी काल में सर्वज्ञ की सिद्धि नहीं होगी । जो संज्ञाओं को संज्ञान से पकड़ लेता है, वह संज्ञातीत होकर अशरीरी भगवान् - आत्मा होता है । इन्द्रियों में विषय नहीं है। इन्द्रियाँ विषयों की भोक्ता नहीं हैं, इन्द्रियों से विषयों को भोगा जाता है। इन्द्रियाँ कर्त्ता नहीं, इन्द्रियाँ करण हैं । आँख देखती नहीं, आँखों से देखा जाता है। अक्ष से भोगा नहीं जाता, I भोगता नहीं, अक्ष पर लक्ष्य चला जाता है तो अक्ष के भोग विवश हो जाते है। अक्ष पर लक्ष्य नहीं गया तो अक्ष में लिप्त हो गया। जो-जो अक्ष में लक्ष्य ले गये, वे अलक्ष्य में चले गये । अक्ष को अलक्ष्य बनाओ तो तू अलक्ष्यातीत हो जायेगा । अक्ष आत्मा सातों तत्त्वों से संबंध रखती है एक समय में। पाँचों ही इन्द्रियाँ भोक्ता नहीं, पाँचों इन्द्रियों से भोगा जाता है । और एक भी इन्द्रिय कम हो गई तो मोक्ष नहीं मिलेगा। पाँच इन्द्रियों की सत्ता में ही हम पाँच समितियों का पालन करते हैं । प्रत्येक इन्द्रिय का एक ही विषय नहीं है। संसार का विषय भी है, परमार्थ का विषय भी है। जो आँख किसी नारी को निहारती थी, आज जिनवाणी को निहारती है। नारी को निहारे तो संसार की ओर ले जा रही है आँख और जिनवाणी को निहारे तो मोक्ष की ओर ले जा रही है आँख । ये ज्ञानी पूछ रहा है कि स्पर्श इन्द्रिय का क्या महत्त्व है ? स्पर्शन इन्द्रिय हल्का, भारी, ठण्डा, गर्म, रूखा, चिकना, कड़ा, नरम वेदन करती है। ये आँख विषयों पर जा रही थी, वहीं स्पर्श इन्द्रिय कह रही है, ज्ञानी ! निहारो, शरीर पर जीव तो नहीं है, वेदन कर लो, उसकी हिंसा न हो जाये । स्पर्शन इन्द्रिय काम करना बन्द कर देगी तो तेरा किसी जीव पर लक्ष्य नहीं जायेगा, कि स्पर्श का राग कर सकूँ। माँ जिनवाणी कह रही है कि निर्ग्रन्थ योगी रात्रि में, कदाचित् शरीर की बाधा पड़ जाये तो, हाथों को नीचे करके अनुभूति लेते हैं, कि कोई जीव तो नहीं है, क्योंकि हाथ बड़ा स्पन्दनशील स्थान है। शीत की अनुभूति की तो पिच्छी से मार्जन कर लिया, और उष्णता की अनुभूति की तो पिच्छी से मार्जन कर लिया। यदि ये स्पर्शन इन्द्रिय अनुभूति नहीं लेती, तो आप शीत और उष्णता के समय जीवों की रक्षा नहीं कर पाते। यहीं देखो, आप स्पर्शन इन्द्रिय का दुरुपयोग करते हो, भोगों, रागों, अब्रह्म में लिप्त होने में स्पर्शन इन्द्रिय ही काम आती है। पाँचों इन्द्रियों के साथ ये हो रहा है । कर्ण इन्द्रिय गीत संगीत में लिप्त होती है तब कर्मों में लिपटती है। जब तू प्रभु-भक्ति की संगीत में लीन होता है, तो कर्मों से मुक्ति होती है। कानों को संभाल कर रखना । कान बिगड़ गये, तो समाधि बिगड़ जायेगी । और यदि कान सजग रहे, संभावना रखो, तो समाधि बिगड़ने नहीं पायेगी । हे मुमुक्षु ! पर की आलोचना सुनने में कान खड़े रहे तो समाधि बिगड़ जायेगी और कानों से नहीं सुनाई नहीं पड़ी जिनवाणी, तो समाधि बिगड़ जायेगी। इन आँखों को संभाल कर रखना । आँखें पर में चली गई, तो नरक में भेज देगी और आँखें परमात्मा में चली गई, तो सिद्ध बना देगी। इसलिए पाँचों इन्द्रियों को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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