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________________ २२ समय देशना - हिन्दी हिंसा होती है। अब तू ध्यान कब करेगा ? इसके पहले ही पलायन हो गया। न ध्यान केन्द्र पर पहुँच पाया, न ध्यान पर पाया, ध्यान तेरा ईंट-चूने में चला गया । हे ज्ञानी ! तूने ध्यान कहाँ किया ? इसलिए वही ध्यानकेन्द्र है, जहाँ तू बैठ जाये, जहाँ तेरा चित्त लग जाये। कोई केन्द्र के पीछे ध्यान को भंग मत कर लेना । इसलिए द्रव्य-क्षेत्र की विशुद्धि बनाना है, तो छोड़ देना शहरों की गलियों को, चले जाना एकान्त पहाड़ी पर, जाकर बैठ जाना । और केन्द्र में शायद तेरा चित्त केन्द्रित न हो पाय, लेकिन जो प्राकृतिक स्थान होगा, वहाँ ध्यान लग ही जायेगा। पहले तूने भवन बनाने में चित्त को लगाया, फिर सुन्दर बन गया तो देखने में चित्त चला गया और फिर मन ने कहा कि अपने चित्र और खिचवा के लगवा दो, सो अब तो हो गया पूरा ध्यान । विश्वास रखो, परमध्यान में लीन योगियों ने सम्पूर्ण भूमि का परित्याग करके, इन विकल्पों से शून्य होकर निर्विकल्प ध्यान को प्राप्त किया। हे ज्ञानी ! तेरे द्रव्य का उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य तो अखण्ड अविराम है और तेरी पर्याय का उत्पादव्यय-ध्रौव्य भिन्न अखण्ड अविराम है। पर हमने भूल कहाँ की? पर्याय के उत्पाद-व्यय में लिप्त होकर द्रव्य के उत्पाद-व्यय को भूल गया । असमान जाति पर्याय में, इसकी जीर्णता-शीर्णता में आकर परिणामों को जीर्ण-शीर्ण करता रहा, जबकि पर्याय की जीर्णता-शीर्णता से मेरे परिणामों की जीर्णता-शीर्णता में मेरे परिणामी को कोई अन्तर आता नहीं। जिनके तन में अग्नि लगाई जा रही हो, उस समय वे परमेश्वर क्या चिन्तन कर रहे थे ? मुनिराज बनाकर आपको कोई भी बैठा सकता है, पर मुनिरूप में तो आपको ही बैठना है। तो इस विषय को भूलकर भी भूल मत जाना । जब शरीर को कोई पीड़ित कर रहा हो, तब इस पंक्ति का ध्यान करना, अहो ! मेरे द्रव्य का उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य तो त्रैकालिक है । इस तन का उत्पाद-व्यय इस तनरूप है। मैं इसे रोक भी कब पाऊँगा? लोक तत्त्व को नहीं समझ पाते तो तत्त्व का विपर्यास कर बैठते हैं। बोले- महाराज ! कहा *से बोल रहे हो? ज्ञानी ! कहीं से नहीं। जो वस्तुस्वरूप है, वह यही है । तूने अपनी पर्याय के ७०-८० वर्ष कैसे निकाल डाले। क्या इन्होंने घी, दूध का सेवन नहीं किया होगा ? जब भी दूध-घी का सेवन किया है, तो आयुर्वेद कहता है कि घृत आयु को बढ़ाता है, दुग्ध शरीर को पुष्ट करता है। जगत के सम्पूर्ण आहारों में श्रेष्ठ आहार कोई है तो दुग्धाहार है। लेकिन जन्म से ऐसे दुग्धाहार को करनेवाला भी बूढ़ा होता देखा जाता है। हे मुमुक्षु ! ध्यान दो, तेरे सबकुछ करने के बाद जो परम सत्ता है उसे तू बदल नहीं पाता है। पर्याय का उत्पाद व्यय त्रैकालिक चल रहा है, इसे आप रोक नहीं पाओगे। तो इधर पर्याय में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य चल रहा है, उधर अन्तरंग में तेरे ज्ञानादि गुणों में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य चल रहा है। किसी को समझ पाओ, मत समझो, लेकिन अन्दर के उत्पाद-व्यय को समझ लो। इसके बिना योगी कहाँ ? योगदीक्षा तो अनंत बार ले सकते हो, पर योग में लीन अनंत काल तक नहीं रह सकते। यह ध्रुव सत्य है, बड़े विश्वास के साथ समझना। ये द्रव्यानुयोग है। इस पर दृष्टि नहीं जायेगी तो विश्वास रखना, थोड़ा भी मुनिपना पूरी पर्याय में नहीं बन पाया । गुणस्थान को तो गौण कर दो। मुनि का गुणस्थान बनाने के लिए मुनित्व के अन्दर ही निवास करना पड़ेगा। क्या करूँ? मैं जब यहाँ बैठता हूँ, तो सत्य ही नजर आता है, बाहर की बात किंचित भी पसंद नहीं आती। बराबर मानिये कि आप इस ध्यान का लोप कर देंगे तो पंचमकाल में वीतरागधर्म का लोप हो जायेगा । जबकि पंचमकाल के ३ वर्ष ८ माह १५ दिन पूर्व तक वीतराग शासन जयवंत रहेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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