________________
समय देशना - हिन्दी
चमक नहीं दिख रही है ।
सोने की वर्णमाला सोने के पास नहीं जाने दे रही है। आत्मा के अन्दर जो चिद्ज्योति है, जैसे मोह की रोशनी, आत्मा के शुद्ध द्रव्य को ढँके हुए है। सूर्य की किरणें अनेक है, पर सूर्य एक हैं। राग और अनुराग की किरणें अनेक हैं, पर चिद्ज्योति चैतन्य चमत्कार एक है । परन्तु तत्त्वज्ञ ज्ञानी जीव उस रोशनी की किरणों को न देखते हुए किरणवान् को देख रहा है। किरणों में भेदभाव है, पर किरणवान एक है। ऐसे ही प्रतिक्षण प्रतिपल जो आत्मज्योति है, वह एक चिचमत्कार रूप उद्योतवान् है। अब आज से आत्मा को प्रकाशपुंज कहना बंद कर दो। जो आत्मा को प्रकाशपुंज के रूप में देखते हैं, वे पुद्गल की पर्याय के भेद हो जायेंगे। जो चिज्योति शब्द है, वह पौद्गलिक विद्युत तरंगें नहीं है, वह स्वानुभूति की लहरें है। वे अंदर की अनुभूतियाँ हैं । उनको ज्योतिर्मय कहा जाता है। पर ज्ञानज्योति खिलने वाली नहीं है । अज्ञानी भीतर के विषय को बाहर देखना चाहता है। दीपक का उद्योतन नहीं है, ज्ञान का दीपक है। जब भीतर का दिखता है, तो आँखें देखती नहीं और जब आत्मा दिखती है, तो आँखें देखती नहीं ।
'समयसार आँखों से दिखने का नहीं, आत्मा के वेदन का है। उसके चित्र नहीं बन सकते। वह चाक्षुष नहीं है । १४ गुणस्थान परिणामों से चढ़ जाते है; पर हमने चित्र बना दिये, पैरों से चढ़ने के लिए । ईट चूने के भवन में पैरों से जाया जाता है और आत्म के चैतन्य भवन में परिणामों से जाया जाता है। ॥ भगवान् महावीर स्वामी की जय ॥
२५१
q q q
आचार्य भगवान् कुन्दकुन्द स्वामी ने ग्रंथराज समयसार में वस्तु के भूतार्थ और अभूतार्थ स्वरूप का कथन किया है जो भूतार्थ है, वह भी अभूतार्थ है और जो अभूतार्थ है, वह भी भूतार्थ है, जो सत्य है; वह तो सत्य ही है, पर जो असत्य है, वह भी सत्य ही है । असत्य सत्य नहीं होगा, तो असत्य कैसे ? सत्य जब सत्य नहीं होगा, तो सत्य कैसे ? विचार करके चिन्तन करो । असत्य सत्य नहीं, तो असत्य भी नहीं। सत्य असत्य नहीं, तो सत्य नहीं । ध्यान दो, असत्य सत्य है कि नहीं ? असत्य की सत्ता नहीं रहेगी, तो असत्य कैसा ? असत्य भी सत्य है, क्योंकि हिंसा तो हिंसा है और अहिंसा अहिंसा हैं। दोनों सत्य हैं। यदि दोनों की सत्ता नहीं स्वीकारोगे, तो हिंसा पाप कैसे और अहिंसा धर्म कैसे ? व्याख्याता वस्तु के व्याख्यान में वस्तु का नाश करके व्याख्यान न करें, अन्यथा उनका व्याख्यान असत्य है । वह भी सत्य है, क्योंकि जो विषय है, वह वस्तु स्वरूप का प्रतिपादित विषय है । तत्वज्ञान किसे कहते है ? सम्पूर्ण विश्व के जो तत्व हैं, उसका व्याख्यान जो है वह है समयसार । ऐसा आलोकित ग्रन्थ है । जिस ग्रन्थ में सग्रंथों को निर्ग्रन्थ नहीं बनाया जाता, निर्ग्रन्थों को निर्ग्रन्थ बनाया जाता है। सग्रन्थो को निर्ग्रन्थ तो एक श्रावकाचार भी बना देता है। उसमें जीने की कला 'मूलाचार में होती है। सग्रन्थों को निर्ग्रन्थ बारहभावना, वैराग्यभावना ही बना देती है । परन्तु सग्रन्थ जब निर्ग्रन्थ हो जाता है। तभी उस निर्ग्रन्थ को कषाय से कैसे दूर किया जाये, उसके लिए समयसार होता है। कपड़ों से निर्ग्रन्थ तो श्रावकाचार से बन जायेगा, और उस पर चलने की विद्या 'मूलाचार' सिखा देगा। लेकिन निर्ग्रन्थ दीक्षा लेने के उपरान्त फिर वीतराग निर्ग्रन्थ कैसे बनें। उसके लिए समयसार चाहिए। यह भी सत्य है कि जब आप अवकाश में होंगे और खाली समय होगा और अपनी प्रज्ञा से स्वयं आप जी नहीं पाओगे तो आप उन्मत्तता को प्राप्त हो जाओगे। आप जब उत्कृष्ट स्थान पर पहुँचोगे, तो आपको
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org