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समय देशना - हिन्दी बोलेगा, यह सूत्र झूठा है क्या ? सूत्र झूठा नहीं है, सूत्र सत्य है, पर मैं जो कह रहा हूँ, वह भी परम सत्य है। चौबीस तीर्थंकर भगवन्तों में से बाईस तीर्थंकरों ने छेदोपस्थापना का उपदेश नहीं दिया। ये प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर ने सरलता व कुटिलता के पीछे पुनः स्थापित करने के लिए कहा है। राजमार्ग तो सामायिक है, सामायिक भंग हो जाये, तो फिर छेदोपस्थापना । छेदोपस्थापना के दो गुणस्थान हैं । छेदोपस्थापना चारित्र स्वयं में होता है, और छेदोपस्थापना प्रायश्चित्त गुरु देते हैं। ये लौगों (लवंग) वाली दीक्षा से मोक्ष नहीं मिलता । देखो, भटक नहीं जाना । पंचमकाल के लोग जानते कम हैं, कहते ज्यादा हैं। आप समझने लगे न, इसलिए बोल देता हूँ। लौगों (लवंग) वाली दीक्षा से परिणामों की दीक्षा लेना पड़ती है। मोक्ष तो परिणामों की दीक्षा से मिलेगा। जब में दर्शनशास्त्र आदि की पुस्तक पढ़ते थक जाता हूँ न, तब मैं जैन इतिहास पढ़ता हूँ। वह रहती है सरला थकान भी
न से मिटाइये । इतिहास है आपका। अभी तो ये कहना चाहिए कि मनिचर्या बडी अच्छी चल रही है। मध्यकाल की मुनिचर्या देखते न, तो आप नमोस्तु न बोलते। ये भाग्य है अपना । लोग तो बातें करना जानते हैं, समझते नहीं हैं। वर्तमान की मुनिचर्या श्रेष्ठ है मध्यकाल की अपेक्षा। किसी का नाम नही लेना । एक बात ध्यान रखना, कहना छोड़ना नहीं, पर नाम किसी का लेना नहीं। आचार्य समन्तभद्रस्वामी की शैली अपनाना है अपन को । 'आत्ममीमांसा' जब हमने पढ़ी, तब एक बात सीखी, कि आचार्य समन्तभद्र ने ३६३ मतों का खण्डन किया. पर नाम किसी का नहीं लिया। बोले कि मैं पापी का नाम नहीं लेना चाहता। पर श्लोक पढ़ते ही पता चल जाता है, कि अमुक मत का खण्डन हो गया । ध्यान दो, मध्यकाल में कच्छपसंघ था । ये बगीचे लगवाते थे, मठ में रहते थे। काष्ठा संघ, काष्ठ का मंदिर, काष्ठ की प्रतिमा कारंजा में। गौ पुच्छिका संघ- गाय के पूँछ की पिच्छी रखते थे। बकुल संघ बगुले के पंख की पिच्छी रखते थे। तो वजनंदी ऐसा हुआ, उसने पिच्छि रखना ही छुड़वा दी। भगवान् महावीर के निर्वाण से अंतिम श्रुत के वली भद्रबाहु तक का काल १६२ वर्ष अंत समय में श्वेताम्बर पन्थ का जन्म हुआ। दिगम्बर मूलसंघ कुल ६८ वर्ष तक अविछिन्न रहा।
वीर नि.स. ५९३ के पूर्व आ. अर्हदवाली पंचवर्षीय प्रतिक्रमण के समय संघ भेद यापनीय संघ विक्रम की मृत्यु के ७०५ वर्ष दूसरे मतानुसार २०५ वर्ष बीतने पर नन्दि संघ हुआ, वह आ. माघन्दि के समय बना। संघ में भेद आ. अर्हवली के समय हुआ। इस प्रकार देखेंगे कि अनेक उपसंघो ने जन्म लिया, जिनमें एक निस्पिच्छिका संघ बन गया, बोले यह परिग्रह भी छोड़ो। इनमे श्वेताम्बर विकार आ चुके थे। दिगम्बर आम्नाय में अर्द्ध फलक एक कपड़ा रखते थे, दिगम्बरत्व को ढंक कर चलते थे। पीछे का भाग दिगम्बर, आगे के भाग पर कपड़ा ढंकते थे। उसके बाद यापनीय संघ आदि हुए। पर धीरे-धीरे वे सब विलीन हो गये, सत्य एक बचा । एक बात ध्यान रखना, दिगम्बरत्व का कभी अभाव नहीं होगा। कितने नवीन नाम आ जायें, पर सब दिगम्बरत्व में समाविष्ट हो जायेंगे। घबड़ाना नहीं। हर सदी में एक विशिष्ट आचार्य होंगे, नहीं तो धर्म चलेगा कैसे साढ़े अट्ठारह हजार वर्ष तक ? कलश पढ़ लो -
एकत्वेनियतस्य शुद्धनयतो व्याप्तुर्वदस्यात्मनः । पूर्णज्ञानघनस्य दर्शनमिह द्रव्यान्तरेभ्यः पृथक् । सम्यग्दर्शनमेतदेव नियमादात्मा च तावानयं ।
तन्मुक्त्वा नवतत्त्व संतति मिमामात्मायमेकोऽस्तु नः ||७|| आ.अ.क.॥ यह कलश कह रहा है एकत्व नियत है । शुद्धनया परभावों से भिन्न है यह मेरी आत्मा । कैसी है वह आत्मा ? पूर्ण ज्ञान से युक्त है, वही जो सम्यग्दर्शन है। जो सम्यग्दर्शन है, वही आत्मा है। कैसी है? अन्य द्रव्यों
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