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________________ २०६ समय देशना - हिन्दी सम्यक्दर्शन से मोक्ष मानता है, वह जैनधर्म से च्युत है। बोले क्यों? तो फिर सम्यक्ज्ञान होते ही मोक्ष होता है, इतना मान लो। वह भी जैनत्व से शून्य है। एक दर्शन तुम्हारे देश में है, सुगत दर्शन (बौद्धदर्शन) जिनका सिद्धांत है, कि बोधी (ज्ञान) से मोक्ष होता है। मेरा प्रश्न है कि ज्ञान से मोक्ष होता है, तो जैसे ही ज्ञान हुआ, मोक्ष हो गया। फिर बोधी का उपदेश किसको दिया, जब तुम्हारा तो मोक्ष हो चुका था? फिर मोक्ष होने का जो मार्ग था वह बताया किसने? वह ग्रन्थ बनानेवाला कौन था ? श्रुत का विच्छेद हो गया। ऐसे ही यदि आप कहो कि सम्यक्दर्शन से मोक्ष होता है, तो फिर सम्यक्ज्ञान-चारित्र का वर्णन किसने किया ? इसलिए सम्यक्त्व से मोक्ष नहीं, सम्यक्ज्ञान से मोक्ष नहीं, सम्यक् चारित्र से मोक्ष नहीं, सम्यक्दर्शन- ज्ञान-चारित्र होते ही मोक्ष नहीं होता। ज्ञान के होने पर भी मोक्ष नहीं होता। और सम्यक्ज्ञान की पूर्णता होने पर भी मोक्ष नहीं होता । सम्यक्त्व की पूर्णता यानी क्षायिक-सम्यक्त्व, ज्ञान की पूर्णता यानी केवलज्ञान, जो तेरहवें गुणस्थान में होता है। तेरहवें गुणस्थान में क्या निर्वाण होता है ? प्रकृति को नहीं, प्रवृत्ति को पकड़ो। प्रकृति से प्रकृति का नाश नहीं होगा, प्रवृत्ति से प्रकृति का नाश होगा। कुछ करणानुयोग के ज्ञाता लोक का विभाग, कर्म की प्रकृतियाँ, इनके हिसाब जोड़ने में ही मोक्ष मान बैठे हैं । यह भी मोक्षमार्ग नहीं है, इनको घटाना जोड़ना । कहाँ पर कितनी प्रकृति घटी या जोड़ी, ये तो ज्ञान का विषय है। आप उन प्रकृतियों से आगे कितना उठ रहे हो, ये तो बताओ। पहले प्रवृत्ति तो उनकी आलू-प्याज खाने की है और प्रकृति का नाम ले रहे हैं उपान्त समय में । अन्त समय में कितनी इतनी चली गई। आपने ज्ञान प्राप्त कर लिया, आपके ज्ञान से मैं प्रभावित नहीं होता। क्यों? क्षयोपशम था तेरे पास । एक व्यापारी अपना हिसाब-किताब रखता है दिमाग में, आपके पास समय था, तो आपने प्रकृतियों को व्यवस्थित कर लिया दिमाग में। हमें प्रकृतियों को जानकर प्रवृत्ति करना है। केवलज्ञान मात्र से मोक्ष नहीं होता, सम्यक्दर्शन से मोक्ष नहीं। सम्यक्दर्शन की पूर्णता से मोक्ष नहीं, सम्यक्ज्ञान से मोक्ष नहीं, सम्यक्ज्ञान की पूर्णता से मोक्ष नहीं,सम्यक् चारित्र से मोक्ष नहीं, अब यहाँ रुकना पड़ेगा। सम्यक्चारित्र की पूर्णता चौदहवें गुणस्थान में होती है, उसके होते ही मोक्ष होता है । सूक्ष्मक्रिया-प्रतिपाति शुक्ल ध्यान तेरहवें गुणस्थान के अंत में होता हैं। व्युपरतक्रिया निवर्तीनि शुक्लध्यान चौदहवें गुणस्थान में होता हैं। तत्क्षण मोक्ष की प्राप्ति होती है। आयु कर्म के क्षय से होता है। लेकिन उस आयुकर्म का क्षय कौन कर रहा था ? अकालमरण तीर्थंकर का नहीं होता, सामान्य अरहंत का होता है। क्योंकि 'चरमोत्तम' शब्द है 'चरम' नहीं है। चरमोत्तम कौन ? तीर्थंकर । बंध में सम्यग्दर्शन अकिंचित्कर है, यह भी सत्य है। पयडिट्ठिदि अणुभाग, प्पदेसभेदादु चदुविधो बंधो। जोगा पयडिपदेसा, ठिदि अणु भागा कसायदो होति ॥३३॥ वृहद्रव्य संग्रह | योग से प्रकृति व प्रदेश बंध होता है, कषाय से स्थिति व अनुभाग बंध होता है। सम्यक्दर्शन-ज्ञानचारित्र न योगरूप है, न कषायरूप है। 'बंध तो होते देखा जाता है ? स्वर्ग जाते हैं न मुनि महाराज ? बराबर है। रत्नत्रय से मोक्ष होता है । फिर रत्नत्रय से मोक्ष होना चाहिए न ? पंचमकाल में नहीं होता, तो चतुर्थकाल में होना चाहिए न? सभी को फिर क्यों नहीं हुआ? क्यों सर्वार्थसिद्धि जाते हैं ? कारण समझो। रत्नत्रयमिह हेतुर्निर्वाणस्यैव भवति नान्यस्य । आस्रवति यत्तु पुण्यं शुभोपयोगोऽयमपराधः ॥२२०॥पु.सि.उ.॥ रत्नत्रय तो मोक्ष ही का कारण है, लेकिन रत्नत्रय की आराधना में जो पुण्य का आस्रव होता है, वह www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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