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________________ समय देशना - हिन्दी २०८ चल रहा है और तत्व निर्णय करते-करते दृढ़ता आ गई कि यही सत्यार्थ है, यही भूतार्थ है, अब अन्य नहीं हो सकता, अन्यथा नहीं हो सकता । इदमेवे-दृशमेव तत्त्वं नान्यन्न चान्यथा I इत्य - कम्पाय - साम्भोव-त्सन्मार्गे ऽसंशयारुचि ॥११॥ र.क. श्रा । ऐसी जो रूचि प्रगट हो गई, उसका नाम सम्यक्दर्शन है। जैसे ही नि:शंकित भाव उत्पन्न हुआ, वैसे ही कहता - अन्यूनमनतिरिक्तं याथातथ्यं विना च विपरीतात् । निःसन्देहं वेद य दाहुस्तज्ज्ञानमागमिनः ॥४२॥ र. क. श्रा ॥ I न्यूनता से रहित, अधिकता से रहित, जैसा तत्त्व है, वैसा ही कहना, नि:संदेह, अब किंचित भी संदेह नहीं है। समझ में आया ? नहीं आया ? फिर क्यों कह रहे निःसंदेह ? जिस पर मैंने श्रद्धा की है, वह श्रद्धेय है। सर्वज्ञदेव ने जो कहा है, वह सभी आपकी समझ में नहीं आया, वह आ भी नहीं पायेगा । क्यों ? कैवल्य का विषय श्रुत में लिखा जाये तो, कोष्ठबुद्धि ऋद्धि सम्पन्न मुनिराज, वे इतना सारा लिखते, पर पूरा नहीं लिखा जाता । गौतम गणधर भगवान की वाणी को इतना झेलते, तब भी पूरा नहीं झेल पाते और जितना सर्वज्ञ कह रहे हैं, उससे कई गुना सर्वज्ञ जानते हैं। जितना सर्वत्र जानते हैं, उतना व्याख्यान में नहीं आता, क्योंकि व्याख्यान नयों से होता है और ज्ञान प्रमाण से होता है। गहरी बात पकड़ना चाहिए । तत्त्वार्थ सूत्र आगम ग्रन्थ है, कि नहीं है? जिसने 'तत्त्वार्थ सूत्र' को आगमग्रंथ मान लिया हो, वह कहे कि सम्यक्दर्शन अकिंचित्कर है। आप जिस अपेक्षा से कह रहे हो, उस अपेक्षा से परिपूर्ण अकिंचित्कर नहीं है । क्यों ? आप कह रहे है कि बन्ध की अपेक्षा से सम्यक्दर्शन अकिंचित्कर है। हे ज्ञानी ! सम्यक्दर्शन अकिंचित्कर नहीं है, नहीं तो मिथ्यात्व अकिंचित्कर हो जायेगा । कारण पूछ रहा हूँ दोनों तरफ से । "सम्यक्त्वं च' इस सूत्र का अर्थ क्या है ? हे ज्ञानी ! इतना ध्यान रखना, सम्यक्दर्शन जब भी प्रगट होगा, कषायी के ही होगा, अकषायी के नहीं होगा । सम्यक्त्व सर्वथा बंध का कारण नहीं है, तो - सम्यक् दर्शनशुद्धा नारकतिर्यङ् - नपुंसक - स्त्रीत्वानि । दुष्कुल- विकृताल्पायु - दरिद्रतां च व्रजन्ति नाप्यव्रतिकाः ॥३५॥ र.क. श्रा ।। व्रती न होने पर भी जो सम्यक्दर्शन से शुद्ध है, वह नपुंसक नहीं होता, त्रियञ्च नहीं होता, स्त्रीवेद में भी नहीं जाता, यहाँ तक कि दरिद्र कुल में भी जन्म नहीं लेता । दरिद्री सम्यग्दृष्टि हो सकता है, पर सम्यग्दृष्टि दरिद्री नहीं होता। जिसने मिथ्यात्व का सेवन किया होगा, वही दरिद्र कुल में जन्म लेगा | जिसने सम्यक्त्व का सेवन पूर्व में किया है, वह उच्च कुल में ही जन्म लेगा । ओजस्तेजो विद्या वीर्य यशोवृद्धि-विजय - विभवसनाथाः । महाकुलमहार्था मानवतिलका भवन्ति दर्शनपूताः ॥ ३६॥र.क. श्रा ।। जो सम्यक्त्व से पवित्र है, वह ओजवान होता है, जिसका शरीर चमकता है। सराग- सम्यक्त्व जिसे होगा, उसे देवायु का बन्ध होगा। पर सराग- सम्यक्त्वी को सम्यक्त्वपने का अभाव नहीं करा सकते अन्यथा सम्यक्दर्शन से बंध का सर्वथा अभाव हो जायेगा, तो सम्यक्त्व होते ही मोक्ष हो जायेगा । फिर चारित्र, ज्ञान किसे होगा ? तत्त्व की भाषा का आनंद लूटना भिन्न विषय है, तत्त्व का निर्णय करना भिन्न विषय है । जो I www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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