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________________ समय देशना - हिन्दी २०७ झलकता है, माँस आदि पिण्ड झलकते हैं । वे इन सबको देखते-देखते भोजन करते रहेंगे, उनको ग्लानी नहीं आयेगी? इसलिए केवली कवलाहारी नहीं होते। जानने से बंध नहीं होता, जानने से मोक्ष नहीं होता। जानने से बंध होता हो तो केवली को छोड़ो, छठवें-सातवें गुणस्थानवर्ती को विषय-कषाय का ज्ञान होता है, कि नहीं? यदि ज्ञान है, और ज्ञान से बंध होता है, तो विषय-कषाय का ज्ञान होने मात्र से बंध हो जायेगा, तो उसका ब्रह्मचर्य कब काम में आयेगा ? विषय-कषाय के ज्ञान से बंध नहीं और मोक्षमार्ग के ज्ञान से मोक्ष नहीं । विषय-कषाय के ज्ञान के बाद विषय-कषाय के प्रति जो रागरूप प्रवृत्ति होती है, उससे बंध होता है। और मोक्षमार्ग के ज्ञान से मोक्ष नहीं होता, मोक्षमार्ग के ज्ञान से जो तत्त्वज्ञान का निर्णय बनता है, और निर्णय से भेदविज्ञान होता है, और भेदविज्ञान से सम्यक्त्व होता है, और सम्यक्त्व से मोक्षमार्ग बनता है। मात्र 'ज्ञान' शब्द लेना । ज्ञान से मोक्ष नहीं होता, और मोक्षमार्ग भी नहीं खुलता । ज्ञान से तत्त्वबोध होता, तत्त्वबोध से तत्त्वनिर्णय होता तत्त्वनिर्णय से सम्यक भेदविज्ञान होता भेदविज्ञान से सम्यकदर्शन होता सम्यकद से सम्यक्ज्ञान होता, और सम्यक्ज्ञानपूर्वक चारित्र होता । यहाँ से मोक्षमार्ग बनता है । ज्ञान मात्र यानि जानकारी। जैसे- आपकी शादी के पहले आपके नगर में कई कन्यायें रहती थी, पर आपका उनसे कोई राग नहीं था। वो दिखती थीं, तो बस यह जानते थे, कि यह किसी की कन्या है। पर जिस दिन से तुम्हारी शादी की बात एक कन्या से चलने लगी, तो वह कन्या अब तुम्हारे लिए राग का कारण बन गई। जब दिखती थी, तब न-बंध था, और आज देखने जाना है, तो बंध प्रारंभ हो गया, क्योंकि अब तुम्हारी बुद्धि में पत्नी बनाने के भाव आ चुके थे। ज्ञान, ज्ञान है। णाणं णरस्स सारो, सारो विणरस्स होइ सम्मतं । सम्मताओ चरणं, चरणाओ होइ णिव्वाणं ॥३१॥ दंसण पाहुड। पहले सम्यक्ज्ञान नहीं होता, पहले ज्ञान होता है। जो पं. टोडरमल जी ने 'मोक्षमार्ग प्रकाशक में लिखा है, वह पं. जी की स्वयं की भाषा नहीं है। मैं मोक्षमार्ग प्रकाशक की एक-एक लाइन को बता सकता हूँ, कि यह कौन-से ग्रन्थ से चल रही है। पं. जी की भाषा नहीं है, वह आचार्य कुन्दकुन्द की भाषा है, और जहाँ पं. जी ने स्वयं की भाषा का प्रयोग किया है, वहाँ पर लोग भ्रमित हुए हैं। पं. टोडरमल जी ने क्या लिखा? तत्त्वज्ञान, तत्त्वनिर्णय, सम्यक्दर्शन युगपत् सम्यक् ज्ञान । पहले तत्त्वनिर्णय करो, तत्त्वज्ञान प्राप्त करो, तब सम्यक् दर्शन होगा। आचार्य कुन्दकुन्द कह रहे हैं- "णाणं णरस्य सारो'' मनुष्यजीवन का सार है ज्ञान । यहाँ ज्ञान पहले बोला, ज्ञान पहले प्राप्त करना चाहिए। जब-तक ज्ञान नहीं होगा, तब-तक श्रद्धान हो ही नहीं सकता। लेकिन सूत्र कहता है, कि सम्यक्दर्शन-ज्ञान में पहले सम्यक्दर्शन होगा। सूत्र में जो सम्यक्दर्शन के बाद ज्ञान लिखा है, वह ज्ञान नहीं है, वह सम्यक्ज्ञान है । यहाँ पर ज्ञान होना अनिवार्य है। भगवान् महावीर स्वामी का श्रद्धान हुआ था सबसे पहले कि ज्ञान हुआ था पहले ? जब यह संघ पहली बार आपके यहाँ आया था, तब इतना अनुराग नहीं था। पहले जाना, फिर देखा । उसी प्रकार गौतम भी भगवान् महावीर के शिष्य बनने नहीं गये थे, समझाने गये थे। परन्तु जैसे ही देखा, जाना, जानते ही तत्त्वनिर्णय हो गया और तत्वनिर्णय होते ही श्रद्धान बन गया और जैसे ही श्रद्धान बना, वैसे ही ज्ञान हो गया और केशलुंचन होना प्रारंभ हो गये। विषय को सरल कर दो। सबसे पहले जीव जानकारी लेता है, कि कैसा है और कैसा नहीं है। वह होता है सामान्य ज्ञान । सामान्य ज्ञान होते ही वह अन्दर से कहता है, कि यह बात तो सही है। यह तत्वनिर्णय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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