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________________ १८६ समय देशना - हिन्दी है, उसके वर्तमान पर्याय में सत्पना किसका है? अशुभोपयोग का। लेकिन असत्पना किसका है ? शुभोपयोग का । जीव में ही होगा न? सत् का विनाश भी होता है, असत् का उत्पाद भी होता है। पर्यायदृष्टि से हमारी आत्मा में जो अशुभ परिणति रूप पर्याय थी, वह थी कि नहीं। इसे स्वीकारिये । कोई जीव अशुभोपयोग में बैठा है, तो उस जीव में अशुभोपयोग है कि नहीं ? अशुभोपयोग जीव में है, कि शरीर की पर्याय में है? जीव शुभपयोग है, वह जीव के ज्ञानगुण में चल रहा है, कि दर्शनगुण में ? अभी मानेंगे । यथार्थ में आत्मा क परम ग्राहकभाव कोई गुण है, तो कौन-सा है ? क्यों मुमुक्षु ! आत्मा एक स्वभावी है कि अनेकस्वभावी है। आत्मा नाना गुण अपेक्षा अनेकस्वभावी है और एक गुण अपेक्षा एकस्वभावी है। जब एकस्वभावी आत्मा को कहेंगे, तो ज्ञानगुण की प्रधानता से कहेंगे। दर्शनगुण की प्रधानता से है क्या ? नहीं। क्यों नहीं कहेंगे ? आत्मा एकस्वभावी, आत्मा अनेकस्वभावी । अनेकस्वभावी में तो प्रश्न ही नहीं आता I नानाज्ञानस्वभावत्वादेकोऽनेकोऽपि नैव सः । - चेतनैक स्वभावत्वादेकानेकात्मको भवेत् ||६|| स्वरूप संबोधन ॥ आप एकगुणस्वभावी कहेंगे, तो एक कौन-सा मुख्य गुण है जो शेष गुणों को गौण कर देगा और स्वतंत्र रहेगा ? श्रद्धा ? श्रद्धा नहीं, क्यों कि श्रद्धा कभी ऊपर, कभी नीचे बदलती है। पहले एक बात स्पष्ट कर दूँ । ज्ञान में सम्यक्पना या मिथ्यापना श्रद्धा करती है। श्रद्धा गुण नहीं है, वो मिथ्यात्व सम्पन्न रूप परिणति बदलती हैं । फिर कौनसा गुण लें ? परमागम कहता है कि ज्ञानस्वरूप आत्मा । ऐसा कहना, परम भाव ग्राहक द्रव्यार्थिक नय का विषय है, क्योंकि इसमें जीव के अनेक स्वभावों में से ज्ञान नामक परमभाव को ग्रहण किया गया है। तो कौन है ज्ञान ? मैं ज्ञान पूछ रहा हूँ, आप सम्यक्ज्ञान की बात कर रहे हैं । कारणकार्य विधान कर रहे हो, सम्यक् कारण है। ज्ञान कार्य है । किसके लिए ? सम्यक्ज्ञान के लिए, पर ये सम्यक्ज्ञान हुआ किसमें हैं? चेतन में, कि अचेतन में? चेतन में । वह चेतन ज्ञानशून्य होता है, कि अशून्य है ? कोई भी चेतन ऐसा नहीं होता जिसमें ज्ञान न हो। सम्यक्-दर्शन-ज्ञान तो होता है, पर ज्ञान तो रहता ही है। इसलिए सिद्ध शाश्वत नहीं होते। मुझे सिद्ध से प्रयोजन नहीं है, सिद्ध होंगे, निगोदिया हुये होंगे, मुझे जीवद्रव्य से प्रयोजन है। वह न कभी होता है, न होगा। वह तो है ही । सिद्ध तो पर्याय है, असिद्ध पर्याय है, परन्तु जीवद्रव्य है ही । अब सुनो आपकी भाषा में । आयाराम गयाराम आत्माराम, शाश्वतराम, बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा ये किसकी दशा है ? आत्मा की । आत्मा की विभाव पर्याय है, किसकी है, ये कौन सा सम्बन्ध चल रहा है, किसकी है, शुद्ध है, अशुद्ध है, बहिरात्मा है, अन्तरात्मा है, ये परमात्मा है ये कौन है ? आत्मा है, यानि बहिरात्मा शाश्वत नहीं है, तो अन्तरात्मा भी शाश्वत नहीं है। परमात्मा भी त्रैकालिक नहीं है । बहिरात्मापन त्रैकालिक है, तो अन्तरात्मा कैसे बनेगा, और अन्तरात्मपन त्रैकालिक है, तो परमात्मा कैसे बनेगा ? परमात्मा त्रैकालिक है तो बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा हुआ कौन था ? तत्त्व का चिंतन करना पड़ेगा। इसलिए जो बदल रहे हैं, वे त्रैकालिक नहीं हैं। जो जिसमें बदलते हों, वो त्रैकालिक हैं। उत्पाद त्रैकालिक नहीं, व्यय कालिक नहीं । जिसमें उत्पाद, व्यय हो रहा है, वह धौव्य त्रैकालिक है। वह ध्रौव्य है और ध्रौव्य द्रव्य है । इसलिए आज तक मैंने सत्य कभी नहीं कहा। जब भी कहता हूँ, तो धौव्य सत्य है, ऐसा कहता हूँ । इतना कथन करने का उद्देश्य मेरा क्या था । आत्माज्ञान स्वभावी है, आत्मा दर्शन स्वभावी है, पर एक गहरी बात है, आप पकड़ते नहीं हो । 'धवला' की पहली पुस्तक में जो दर्शन है वह "चित् ज्योति प्रकाश है" चित् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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