SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४६ समय देशना - हिन्दी है, कि अभिन्न है ? साँचे में आत्मा है । भिन्न है, कि अभिन्न है ? भिन्न है। पुद्गल को तुरन्त अलग करके निहारते हो, परन्तु पुद्गल स्थानी साँचे को जानो उसे अलग करो। ईंट बनते नहीं देखा क्या ? पानी भी रखे रहता है, धूल भी रखे रहता है, क्या आश्चर्य की बात है । बिना धूल छिड़के ईंट साँचे से निकलती नहीं, जबकि मिट्टी गीली करके ईंट बनाई थी, फिर भी धूल चाहिए थी । क्यों ? ईंट निकलेगी कैसे ? धूल चाहिए सूखी, समझो। बिना सूखी धूल के ईंट निकलती नहीं, नहीं तो साँचे में चिपक जायेगी । I हे ज्ञानी ! इस शरीर रूपी साँचे में ईंट पल रही है, इसमें चारित्र की धूल डाले बिना वह निकलेगी नहीं, चिपक जायेगी, भेदविज्ञान की धूल नहीं डाली तो चिपके ही रहोगे। छूटना है, तो धूल डालना पड़ेगी । वही बात कह रहे हैं। शुद्धनय ही भूतार्थ है, क्योंकि वह भूतार्थ को ही प्रकाशित करता है। (कहता है) । जैसे - कोई एक पुरुष प्रबल कीचड़ से मिश्रित या युक्त, निकल चुकी है जहाँ पर स्वच्छता परिपूर्णरूप से, यानी जिस पानी में स्वच्छता का अभाव है और कीचड़ का सद्भाव है, ऐसे कीचड़ मिश्रित पानी को अनुभव करने वाला पुरुष कीचड़ और पानी में भेद किये बिना जो स्वच्छ नहीं है, उसे ही अनुभव करता है। जो देहात में रह रहा है, वह बिना फिटकरी पड़े पानी को पी रहा है, उसने कभी जल को फिल्टर होते नहीं जाना। वह उसे ही स्वच्छ पानी कहता है। उसने स्वच्छ पानी का स्वाद लिया ही नहीं है। वह मटमैला पानी भी बड़े चाव से स्वच्छ मान कर पीता है। वह स्वच्छ था कहाँ ? स्वच्छ होता तो पीलापन क्यों ? यही कारण है कि दान-पूजा-अनुष्ठान आदि में जिसने धर्म मान लिया, लिंग आदि में धर्म मान लिया, वह कहता है कि यही धर्म है। अगर ये धर्म होता, तो अशरीरी स्वरूप क्या होता? कर्दम मिश्रित पानी पीते-पीते आदी हो गया, तो कर्दम को कर्दम नहीं मान रहा है। न मानो तो इन माताओं से पूछो। आप बूरा बनाते हो, तो शक्कर में मैल दिखता नहीं है, परन्तु जब कढ़ाई में रखते हो, तब दिखता है। उसमें निर्मली डाल दो, तो मैल ऊपर आ जाता है, तो उसे आप बाहर कर देते हो। ऐसे ही इस जीव ने व्यवहार रत्नत्रय को प्राप्त कर लिया, और व्यवहार रत्नत्रय की क्रिया में लीन हो गया, पाँच समिति तीन गुप्ति आदि में लीन हो गया। उसे स्वभाव व स्वद्रव्य का भान नहीं है। वह मैल मिली शक्कर का पान कर रहा है, वह शुद्ध बूरे का स्वाद ले नहीं पायेगा । शक्कर, गुड़, मिश्री में भेद क्यों है ? फैक्ट्री गन्ने से शक्कर को निकालती है। ऐसे ही शरीर एक अशुद्ध फैक्ट्री है, इसमें से शुद्धात्मा को निकाला जाता है। कब तक पीते रहोगे मिट्टी मिश्रित पानी ? रहो देहात में, पीयो पानी टंकी का । नगर में जाओ, तो फिल्टर का पानी मिलेगा । आत्म नगर में जाओ तो फिल्टर का पानी मिलेगा, देह ग्राम में रहोगे, तो समन पानी ही मिलेगा। भीलों को देखा सम्मेद शिखर में? वे उसी भूमि पर हैं। वे आपको देखते स्वच्छ कपड़े पहने, फिर भी अपने को नहीं बदलते हैं । वे आपसे बाबूजी कहेंगे, पर स्वयं बाबू को नहीं पहचानते हैं। तन पर वृक्ष का छिलका तो लपेट लेंगे, पर दिगम्बर नहीं हो सकते, ऐसा क्यों ? यो यत्र निवसन्नास्ते, स तत्र कुरुते रतिम् । यो यत्र रमते तस्माद न्यत्र स न गच्छति ॥४३॥ इष्टोपदेश || जो जहाँ निवास करता है, वहीं राग को प्राप्त करता है । अज्ञानी जीव राग और मोह की भीड़ में निवास कर रहे हैं, उसे छोड़ना नहीं चाहते, उसमें ही आनंद मना रहे हैं। भीलों की बस्ती है और मस्त हो रहे हो । म्लेच्छ ही म्लेच्छ हैं। ब्राह्मण म्लेच्छों की बस्ती में जाते हैं, वहाँ कहें कि दूधों नहाओ, पूतों फलो । उनको समझाने के लिए तो कहता है, पर अपने ब्राह्मणपने को नहीं छोड़ता है। ऐसे ही व्यवहारीजनों को व्यवहार से समझाओ, पर निश्चय को मत भूल जाओ । ब्राह्मणत्व मत छोड़ दो । निश्चय ही ब्राह्मण की भाषा है, व्यवहार ही म्लेच्छ की भाषा है। परमार्थ का उपदेश बिना व्यवहार के नहीं दिया जाता, पर परमार्थ को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy