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समय देशना - हिन्दी बोलेगी ? 'मेरा पिता कैसा अभागा था, जिसने डॉक्टर / इंजीनियर की पढ़ाई की, पर सर्विस नहीं की, इसकी बुद्धि को क्या हो गया ?' हे ज्ञानी ! जब तूने जिनमुद्रा को प्राप्त करके परम डॉक्टर को प्राप्त कर लिया, और यदि इसको प्राप्त करके आपने चैतन्य की सर्विस नहीं की तो तेरे कर्म की संतान खड़ी हो जायेगी, वह तो ठंडा बैठेगा, वही कर्म कहेगा कि तू कैसा पागल था, कि मुद्रा को प्राप्त करके मुद्रित नहीं हो सका ।
आगम लिखने का उद्देश्य मात्र इतना है, कि जो पात्र पात्रता को समझ नहीं रहे, उनसे कहा जा रहा है। नहीं तो ग्रंथ बंद करके अलमारी में रख दो। वह आपसे कब कुछ कह रहा है ? वह तो आचार्यदेव की परम करुणा है, कि ऐसी विधि लिखकर चले गये ।
भूतार्थ भी सत्यार्थ है, अभूतार्थ भी सत्यार्थ है । भूतार्थ को सत्यार्थ कहने वाले लाखों है, परन्तु अभूतार्थ को सत्यार्थ नहीं कह पा रहे हैं। अभूतार्थ अभूतार्थरूप में सत्यार्थ है और भूतार्थ भूतार्थरूप में सत्यार्थ है | श्रावक श्रावक की अपेक्षा सत्य है। श्रावक मुनि नहीं है, इसलिए अभूतार्थ है । पर श्रावक भी नहीं है, ऐसा नहीं कहना । कर्म भी सत्यार्थ है। कर्म को सत्यार्थ नहीं मानोगे, तो कर्म की क्षपणा करने का पुरुषार्थ क्यों ? लेकिन कर्म आत्मा का धर्म नहीं है, इसलिए असत्यार्थ है ।
दृष्टांत बहुत हो गये, अब दृष्टांत की ओर चलिए । मैंनें आत्मा को जाना है, यह शब्द भी असत्यार्थ है। मैंने शब्द से आत्मा को किंचित भी नहीं जाना। जिसने आत्मा को जाना है, वह शब्दरूप नहीं है। मैंने आत्मा को पहचाना? 'मैंने' शब्द ने आत्मा को किंचित भी नहीं जाना, क्योंकि आत्मा अलिंगी है। मैंने आत्मा का स्पर्श किया ? मैंने शब्द से आत्मा का स्पर्श किंचित भी नहीं किया, क्योंकि आत्मा अस्पर्श-स्वभावी है। आत्मा अगंध-स्वभावी है। 'मैंने आत्मा को देखा है ?' ये शब्द ही असत्य हैं, क्योंकि आत्मा देखी नहीं जाती है। आत्मा अचाक्षुष है, अमूर्तिक है । मैंने आत्मा को कहा कि 'मैंने' और 'आत्मा' शब्द लिख दो एक कॉपी पर । अब देखो, 'मैंने' शब्द जीव है क्या ? मैंने आत्मा को देखा, जो 'देखा' शब्द है, वह जीव है क्या ? ' मैंने आत्मा को देखा' शब्द ही, इंगित करता है कि मैंने आत्मा को नहीं देखा । 'आत्मा को कहा', आत्मा को कहा नहीं जाता, क्योंकि आत्मा अवक्तव्य है । फिर आत्मा क्या है ? 'मैंने मैंने' जो है, ये सब कुछ समाप्त हो जाये, सो आत्मा है। जो बचा, सो आत्मा । यह भी अभूतार्थ है। पुद्गल की पर्याय सत्य है । वह आत्मा नहीं है। जब योगीश्वर यह कहते हैं कि मैं तो भिन्न हूँ, तो ये 'भिन्न हूँ' शब्द में चला गया, तब तू आत्मा से भिन्न है, तभी भिनभिना रहा है। अभिन्न होता, तो शांत होता ।
सुनते चलो, कम-से-कम इतना तो बोध हो जाये कि जो कुछ है, वह आत्मा नहीं है। आत्मा रागी है। यह तो रागी है, इसका राग सता रहा है नहीं होने का । आत्मा तो विरागी है, तो विराग का राग क्यों है तुझे ? डॉक्टर ! आप जो शल्यक्रिया करते हो, आपके हाथ में शल्यक्रिया के उपकरण होते हैं । आँख देखती है, आपके हाथ में अस्त्र है, उपकरण हैं। यहाँ हाथ पर हाथ रखकर अंदर अस्त्र चलता है, कि कुछ दिखना नहीं चाहिए है । है है, नहीं नहीं । पर 'नहीं' और 'है' के बीच में जो है, वही है। जो कुछ नहीं कहता है, वह आत्मा है । यह पंख चिड़िया है, कि यह चिड़िया पंख है। पंख चिड़िया है लोग पंख निकाल देते है, तब भी चिड़िया होती है। चिड़िया में पंख हो सकते हैं, परन्तु चिड़िया पंख नहीं है। तो यह चिड़िया, कि वह ? दोनों नहीं। तो पंखों के बीच में बैठी वह चिड़िया ? वह भी नहीं। जो इन सबसे रहित है, वह चिड़िया है । जिसे कहा नहीं जाता, वह परम चिड़िया है। चिड़िया चिड़िया बनी, कि आत्मा चिड़िया बनी ? आत्मा बनी । तो चिड़िया तो चिड़िया नहीं है न, चिड़िया तो आत्मा नहीं है न, आत्मा तो चिड़िया नहीं है न ? साँचा तो साँचा है। साँचा ईंट नहीं है। साँचे में ईंट बनती है। ईंट साँचा नहीं है, साँचे में ईंट है। तो साँचे में ईंट भिन्न
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