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________________ समय देशना - हिन्दी १३२ तुम्हें, 'ये, वे बोलती है तब भी तुम्हें शर्म नहीं आती। आप पत्नि का नाम लेते हो, क्योंकि दास हो। वह नहीं लेती न । कह देना कि आज मत करना 'ये, वे । मैं 'ये, वे' से रहित शुद्धात्मस्वरूप हूँ| परम तत्त्व की ओर लक्ष्यपात करो। || भगवान् महावीर स्वामी की जय ।। aga आचार्य भगवन् कुन्द-कुन्द स्वामी 'समयसार' ग्रन्थ में समझा रहे हैं। श्रुत की महिमा अलौकिक है। उस अनुपम स्वरूप को सुनना है, स्वानुभूति के बल पर, यह अध्यात्म-विद्या है, इसलिए गृहस्थों के बीच में नहीं होती, क्योंकि, इनको शब्द सुनाई पड़ते हैं, पर अर्थ की अनुभूति नहीं होती है । अर्थ की अनुभूति का न होना स्वात्मानुभूति से दूर रखती है, और जहाँ स्वात्मानुभूति होगी, वहाँ अर्थ का राग समाप्त हो जाता है। यह समयसार ग्रन्थ कह रहा है कि समय है और समय पर समय है। समय पर 'समय' को समझ लिया होता, तो पंचमकाल में न बैठा होता । जैसी भूल पूर्व में की है, ऐसी भूल चल रही है जो भूल जीव ने रागवश, क्लेशवश की है। उसको न सुधारने से श्रुत के समीप पहुँचा, द्रव्यश्रुत को समझा, द्रव्य-शब्दों को जाना; पर भावश्रुत को नहीं पा सका। "यस्मात् क्रिया प्रतिफलंति न भावशून्या ।"३८ कल्याण मंदिर स्त्रोत ॥ जो क्रिया भावशून्य है, वह क्रिया कभी फलित नहीं होती। समय भी गया, आयु भी गई, अर्थ भी गया। भाव के अभाव में ध्रौव्य भी गया। भावना बन जाती एक बार, तो इतना सबकुछ न जाता। भवातीत हो जाता । लेकिन भाव के अभाव में सबकुछ किया, परन्तु हाथ में कुछ भी नहीं आया। भवातीत होना है, तो अतीत की भावना को संयोगीभाव को, विभाव को, अतीत करो, विचार करो राग की लालिमा ने दो पांडवों को सिद्धालय नहीं जाने दिया। तपस्या बराबर चल रही थी, पर भाई के राग में इतना ही सोचा था, कि मैं तो सहन कर रहा हूँ, पर मेरे भाई का क्या होगा। उस राग में मालूम चला कि वह तो खड़े रह गये और वे मोक्ष चले गये । ध्रुव सत्य है, जब अध्यात्म विद्या में प्रवेश होगा, फिर जगत के राग की लालिमा में नहीं आ पाओगे। मिट्टी गीली है तो चिपकेगी और सूख जाये तो झर जाती है। जब तक परभावों में राग की आर्द्रता है, तब तक चिपकोगे-ही-चिपकोगे। आर्द्रता समाप्त हो जाये, तो झरना प्रारंभ हो जायेगा। पर झरने बनाये बैठे हो, तो झरोगे कैसे ? ध्यान दो लोगों में झरने फूट रहे हैं, राग के, कर्म के झरने झर रहे हैं, वे झरनेवाले नहीं हैं। जब -तक झरने झरेंगे, तबतक मिट्टी गीली होती रहेगी। पहले झरने को बंद करो। जब तक राग की आर्द्रता है, तब-तक कर्म झरनेवाले नहीं हैं। पुरुषार्थ प्रबल हो, खेत में काली मिट्टी हो, पानी गिर जाये, मिट्टी चिपक जाये तो जितना छुटाओगे उतनी चिपकती है। जब तक हृदय में विषय-कषाय की काली मिट्टी चिपकी है, तब-तक आप उसमें चिपकते रहोगे। कितना भी तत्त्वज्ञान के पानी से धो लेना, पर आपके पैर साफ नहीं होंगे। सूखी भूमि पर चलना होगा, यदि पैरों को स्वच्छ करना चाहते हो तो। गीली भूमि पर सदा कीचड़ से युक्त रहोगे। धन्य हैं श्रुतकेवली भगवन्त, जो श्रुतसरिता में अवगाहन करके कर्मो की काली मिट्टी को जड़ से समाप्त कर रहे हैं। इस बात को आचार्य जयसेन स्वामी लिख रहे हैं। जो द्वादशांग श्रुत को परिपूर्ण जानते हैं, वे श्रुतकेवली कहलाते हैं। वे जानते ही नहीं हैं, अनुभव भी करते हैं। अनुभवन ही नहीं करते, व आचरण भी करते हैं। वे व्यवहार-श्रुतकेवली हैं। ऐसा सर्वज्ञदेव ने कहा है । द्रव्यश्रुत के आधार से उत्पन्न हुई है जो For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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