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________________ समय देशना - हिन्दी १२६ शुभ में परिवर्तित कर दिया, तो वे शुभ में आने लग गई, लेकिन राग दोनों में था, भोगना दोनों को पड़ेगा, इसलिए समय पर दोनों को सुखाइए। समय देना पड़ेगा। बिना समय दिये वे सूखने वाली नहीं हैं। कोई भी वेग आ जाये, उसे समय दे दो। गुस्सा आ जाये तो समय दे दो। एक घण्टे बाद कर लेना । इतना समय दे दिया, तो उस गुस्से का समय निकल जायेगा। आपके कुटुम्बी/परिजन आपको सत्य का ज्ञान नहीं होने दे रहे हैं। ये सब आपके शत्रु हैं। जब ये कषाय में आपसे कहें कि निकल जाओ घर से, उस दिन आपको जो ज्ञान होगा, वह सत्य का होगा। ये प्रेम की राग की स्निग्धता में आपको बाँधे हैं। जिस दिन ये शुष्क हो जायेंगे, उस दिन सत्य का ज्ञान हो जायेगा । वस्तु स्वरूप समझ में आवेगा । बेटा जब चाबी माँगे, तब तुम कहते हो, कि हमने बेटे को जन्म क्यों दिया था ? तुमने जन्म नहीं दिया, बेटे ने तो जन्म ले लिया, तुमने तो वासनाओं को जन्म दिया था। उन वासनाओं का फल यह दिख रहा है। समझ में आ रहा है ? सबको समझ में आ रहा है? पर समय तो हो गया, अभी समझ में नहीं आ रहा, समझ में बिल्कुल नहीं आ रहा । समयसार के शब्द मेरे मुख से निकले हैं, वह आपको समझ में आ रहे है, लेकिन 'समयसार' समझ में कहाँ आ रहा है? समयसार समझ में आ गया होता, तो तू स्वसमय में होता । तू तो निर्ग्रन्थ होता । कौन किसको बनाता है? तू मुझे अपना कर्ता क्यों मान रहा है। मैं ही पहुँच गया था। मुझे आचार्य श्री विरागसागर लेने नहीं गये थे। इस कर्त्तव्य भाव को छोड़ दीजिए कि मुझे बना लो। स्वयं ही बन जाता है। स्वयं ही पकाता है, स्वयं ही खाता है और स्वयं ही स्वाद लेता है, ऐसा भोजन है। इस पुद्गल (शरीर) को मत निहारो। इसके अन्दर बैठी भगवती आत्मा को निहारो। 'असहाय'। जब तक सहाय का भाव है, तब तक बन्ध है। अपने को असहाय बना लो । पर की सहाय को छोड़ दो। हे ज्ञानी ! परभावों को जितना तुम दुलार दोगे, कर्म तेरी आत्मा को नहीं छोड़ेंगे। इस प्रकार निश्चय केवली का इस गाथा में वर्णन हुआ। अब व्यवहार केवली का वर्णन अगली गाथा में करेंगे, पर्याय रही तो। ॥ भगवान महावीर स्वामी की जय ॥ aga Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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