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________________ समय देशना - हिन्दी १२५ तो कर ही सकता है। अनुभूति से, अनुभव से निहारो, जिसे कुन्दकुन्द देव ने उद्घाटित किया है। जो लिखा है वह जब इतना सुन्दर है, तो लखा कितना सुन्दर होगा ? लख-लख कर लिखा है, इसलिए सुन्दर है। सम्यग्दृष्टि जीव सम्यग्सहित है, वह ज्ञानी है। शुद्ध ज्ञानचेतना तो केवल ज्ञान है। उस केवल ज्ञान की अनुभूति लेना चाहते हो, तो निज के ज्ञान से निज के ज्ञान का वेदन करो। असंभव नहीं समझना, पर ध्रुव सत्य बताऊँ, समय देना पड़ता है। यहाँ पर आप सबके प्रश्न समाप्त हो जाते हैं। समय देना पड़ता है, परन्तु आप तत्त्व को समय नहीं देना चाहते, कुकर में डाले गये चावल को समय देना चाहते हो। सीटी बजने का इंतजार करते हो, उतना समय देते हो। ऐसे ही अपनी आत्मा में चारित्र को डाल दीजिए, फिर उसे समय दो, चिन्तन का । आप जिनालय आते हो तो परम्परागत नौ बार णमोकार पढ़ लेते हो। पूजन भी परम्परागत कर लेते हो, पर पाँच मिनट बैठकर निज के लिए समय कहाँ देते हो? घर से आये थे जिनालय में, पहले से भरके आये थे। किस बात से भरे थे? पूजन करना है । मन्दिर में पूजा कर रहा हूँ, इससे भरे रहे । इसका मतलब यह नहीं कि आप पूजन छोड़ दो। उसे छोड़ना नहीं है, उसे करना है। शुभ काम कर रहे हो । पर ध्यान दो, भरे ही नहीं आना, खाली आकर अपने लिए समय निकालना। आप नौका पर इसलिए बैठे थे कि नदी पार हो जाये, पर आपको नौका इतनी अच्छी लगी, कि आप छोड़ना नहीं चाहते । आप नदी पार करने के लिए बैठे थे, किनारा आये तो नौका छोड़ देना था। ये पूजापाठ-जप-तप आदि नौका है स्वसंवेदन के लिये, आत्मा का ध्यान लगाने के लिए, उसी में बैठना नहीं है, आत्मधाम में उतरने को मिली थी। यह नौका धर्म का साधन है, अभी आपको धर्म के पास पहुँचना है। नर्मदा जा रही थी समद्र की ओर सागर बनने के लिए, आपने बीच में ही बाँध बाँध दिया। वह नदी अब समद्र तक नहीं जाने पायेगी। उसका पानी खेतों की क्यारियों में जाने लगा हैं। जो तेरा चित्त महासागर का रूप लेने वाला था, तूने गृहस्थी का बाँध बाँधकर क्यारियों में डालना शुरू कर दिया है। वहीं-का-वहीं समाप्त हो जायेगा । बाँधो मत, बहने दो। आप पहले पढ़ते थे। कोई डॉक्टर, कोई वकील, इंजीनियर की पढ़ाई मोटी-मोटी पुस्तक से करते थे। आपका क्षयोपशम तीव्र था, तभी आपने यह डिग्री ले पाई। लेकिन आप डिग्री लेने के बाद सन्तुष्ट हो गये तो आपका क्षयोपशम वहीं रुक गया। ज्ञान प्राप्त करने में संतुष्टि नहीं होना चाहिए, अन्यथा क्षयोपशम रुक जाता है। श्रुत का अध्ययन तब-तक करते रहना, जब-तक शिव में न पहुँच जाओ। शिव में पहुँचने के लिए श्रुत ही शुक्लध्यान के लिए आलम्बन बनता है। जैसा पूर्व में व्यवहार से कहा था, कि परमार्थ से जानना चाहिए, अब उसी के अर्थ को कहते हैं। भावश्रुत और स्वसंवेदन ज्ञान के लिए समय चाहिए। एक बार क्या हुआ कि एक सज्जन के यहाँ मेहमान आये, उसी समय वहाँ उसे मल दिख गया। उसने सोचा कि यदि मेहमान के सामने हटाते हैं, तो हँसी होगी, उसने उस मल पर फूल डाल दिये, और बदबू न आये, इसलिए एक अगरबत्ती लगा दी। अब यह बताओ कि उस अगरबत्ती ने बदबू को हटा दिया या सुगन्ध के परमाणु बढ़ा दिये? सुगन्ध ने मल के परमाणु का अभाव नहीं किया, वे तो वहाँ हैं, पर अगरबत्ती के परमाणु तेज थे, उसने सुगन्ध फैला दी, पर दुर्गन्ध का अभाव नहीं हुआ। ध्यान दो, सुगन्ध यहाँ-वहाँ आती दिखेगी, मल के दुर्गन्ध से जो पीड़ित होने वाले थे आप, वह नष्ट नहीं हुई। जिनशासन कहता है, कि इन कर्मप्रकृतियों को सुखाना चाहिए। जो अशुभ में आने वाली थी, उन्हें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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