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________________ १२४ समय देशना - हिन्दी में मस्तिष्क हल्का होता है। जिनवाणी के चिन्तन करने से कभी सिरदर्द नहीं होता। पर आपकी गृहस्थी का राग तनक-सा आ जाये, तो तनाव कहलाता है, टेन्शन हो गया, मस्तिष्क गर्म होगया, सारी शक्ति समाप्त हो गई, और जिनवाणी का चिन्तन करनेवाला इतना विशुद्ध होता है, कि एक क्षण में सात राजू गमन करता है। यह किसकी महिमा है ? यह शुभचिन्तन की महिमा है । अशुभ चिन्तन आता है, विश्वास रखो, आप सभी अनुभावित है। किंचित भी तनाव बढ़ता है, तो घर में जाकर चारपाई पर लेट जाता है। तन स्वस्थ है, पर मन स्वस्थ नहीं है। मन स्वस्थ नहीं है, इसलिए तन कार्यकारी नहीं हो रहा। उस चिन्तन को अध्यात्म की ओर मोड़ दो। मन प्रशस्त रहता है न, तो सब काम अच्छे होते हैं। मन प्रशस्त नहीं है, तो कोई भी काम अच्छा नहीं होता। जैसे आप वस्त्र, शरीर आदि को स्वच्छ रखना पसन्द करते हो न, उससे ज्यादा स्वच्छ रखना चाहिए मन को । मन स्वच्छ रहे वाह तो वस्त्र आदि स्वच्छ न भी हों । दिगम्बर मुनि से तो पूछो, जिनका मल भी आभूषण है। मन इनका स्वच्छ है, इसलिए परमेष्ठी पद में आते है । मल परीषह है। उस पर दृष्टि नहीं है । तन भले स्वच्छ न दिखता हो, पर मन स्वच्छ है। तन की स्वच्छता से मोक्ष नहीं मिलता। तन को कितना भी स्वच्छ करो, पोंछो परन्तु मोक्ष तो मन के स्वच्छ होने पर ही मिलेगा। अशुचिभावना पर दृष्टि करो। यहाँ आचार्य जयसेन स्वामी कह रहे हैं समयसार की नौवीं, दसवीं गाथा की टीका में । वे परमश्रुत केवली जो श्रुत में केलि कर रहे थे। सत्य बताना, जीवन के क्षण कहाँ जाते हैं ? एक तो वैसे ही आपको व्यापार से समय नहीं मिलता, कदाचित् मिल भी जाये, तो कुश्रुति में जाता है । न तुझे जीतना है, न मुझे हारना है। पर तूने 'कौन हारा, कौन जीता' में जीवन बर्बाद कर दिया। राष्ट्रकथा में जीवन जा रहा, कुश्रुति चल रही है। मालूम चला, तू तो पिच्छि कमण्डलु को स्वीकार किये था, जिनमुद्रा में लवलीन था, तू तो निज आत्मप्रदेश का सम्राट था । तू तो अपने राज्य का राज्य कर ही रहा था, फिर क्यों पर की पार्टी के कारण अपना स्वराज्य खो रहा है? राष्ट्र कथा से मिलेगा क्या ? हे ज्ञानियो ! निर्ग्रन्थों की समाचार विधि 'मूलाचार में लिखी है। वे समाचारी हैं। उनके लिये बाहर का समाचार कुकथा ही है, बन्ध का ही कारण है, प्रमाद है। राष्ट्रकथा से निज की रक्षा करना । चोर कथा, किसने चुराया, किसने हरण किया, कैसे हरण किया ? देखो, कितना तन्मय हो रहा है? स्त्रीकथा, स्त्रियों की रागभरी कथा में लवलीन है। और सबसे बड़ी कथा यह कि पेट भरा हो, फिर भी भोजनकथा चलती है। सर्वाधिक कथा भोजन की चलती है। सुबह के भोजन के बर्तन साफ नहीं हुए, कि शाम की चिन्ता शुरू हो जाती है । प्रातः का तो साफ नहीं हुआ, पेट भरा है, और शाम को भरने की चिन्ता शुरू हो गई । यथार्थ मानिये व्यर्थ के आस्रव से तो हम बच सकते हैं। चन्दन का वृक्ष जैसा होता है, वैसा ही मुनि का भेष होता है। चन्दन के वृक्ष की ऊपरी छाल काली है, भीतर सुगन्ध न्यारी है। ऊपर से योगीश्वर मल से आच्छादित दिखते हैं, भीतर में स्वानुभव की तरंग न्यारी होती है। जैसे ही चन्दन के वृक्ष की छाल निकलती है, तो बाहर सुगन्ध फैला देता है, उसी प्रकार उन योगीश्वर के पास जो आता है, वह भी सुगन्ध लेकर चला जाता है। हे ज्ञानी ! चन्दन का वृक्ष तो एकेन्द्रिय है, कर्मफल-चेतना का भोक्ता है, पर ये यतीश्वर ज्ञानचेतना के फल को भोग रहे हैं। शुद्ध ज्ञानचेतना का कोई भोक्ता है, तो अशरीरी सिद्ध परमात्मा हैं। तू शुद्ध ज्ञानचेतना का वेदक हो या न हो, पर ज्ञानचेतना का भोग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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