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________________ समय देशना - हिन्दी ૧૧૬ यहाँ ? वह दिन कब आये, वह श्रुत कब आये, जब एक बार शुद्ध अपनी श्रुति को ही जाने। पर का द्रव्य तेरे हाथ में आते ही तू राग को प्राप्त हो गया। यह पैसा तेरा है फिर कहा जाये कि पैसा खर्च करो, तो मौका देखता है दूसरे का ... | जब तेरे हाथ में कुछ भी नहीं था, तब कोई विकार नहीं था। हाथ में आते ही जेब में रखे थे तन के प्रयोग के लिए। धन का प्रयोग पर का पसंद करता है और अपने धन की सुरक्षा के लिए राग रखता है । परन्तु जो श्रुतज्ञान तुझे मिला है, वह पर-भोगों के लिए खर्च करता है, निज के प्रयोग के लिए खर्च करता है। जो श्रुत का प्रयोग विषय कषायों में करते हैं, वे मृत्यु के काल में बुद्धि विहीन हो जाते हैं। स्मृतियाँ रहे कैसे ? मृत्यु के समय में उनकी ही बुद्धि अच्छी रहती है, जिन्होंने जीवन को विशुद्धभावों से जीया । आज का ज्ञान काम नहीं आयेगा, अन्तिम समय में श्रुतज्ञान चाहिए। आप सभी में कुछ ऐसे होते हैं जो अपने बेटे से छुपाकर रखते होंगे बुढ़ापे के लिए, क्योंकि किसी ने नहीं दिया अंतिम समय में, तो वह अपने पास रहेगा। ऐसे ही श्रुत ज्ञान को छिपा कर रखिए, अन्तिम समय में कोई सुनाने वाला मिला या न मिला, तो मृत्यु के काल में तेरा श्रुत ज्ञान तुझे सुना देगा, तो तू ही तेरा क्षपक होगा, तू ही निर्यापकाचार्य होगा। यह पूँजी आप समझ नहीं रहे, मैं आपको क्या बता रहा हूँ। स्वयं की पूँजी न होती न तो सुनाने वाले आते न तो समझ में आता । इसलिए अधिक लम्बा समय श्रुत का ही हो, इसको आप परभावों में नहीं लगा देना। 'आत्मस्वभावं परभाव भिन्नं' ज्ञानी ! तेरी आत्मा का जो स्वभाव है, परभावों से भिन्न है। यही आचार्य भगवान् अमृतचन्द्रस्वामी अपनी 'आत्मख्याति टीका में कह रहे हैं। वे निश्चय श्रुतकेवली क्या हैं? मुझे ज्ञान है श्रुत का ऐसे श्रुत के विकल्पों से भी निर्विकल्प हैं, वे हैं परम निश्चय श्रुतकेवली । ध्यान दो श्रुत का विकल्प भी कभी-कभी आपको श्रुत से अलग कर देता है। 'मैं ज्ञाता हूँ' यह शब्द तेरे में गूंज रहा था और ज्ञायकभाव भूल रहा था। जब तू 'मैं ज्ञाता हूँ' कह रहा था, तब पर को अज्ञातभाव से निहार रहा था। तेरे निज के ज्ञातभाव में पर का अज्ञातभाव छिपा था। जब तू दोनों शब्दों को बोल रहा था, उस समय तेरी आत्मा का उपयोग कहाँ था ? दिगम्बर श्रमण संस्कृति में साधुओं के लिए निर्वस्त्र क्यों बनाया ? श्रृंगारशून्य, सबसे भिन्न क्यों ? क्या था तेरे पास ? सुनो, श्रुत था तेरे पास । कपड़े धोने में श्रुत का प्रयोग होता है कि नहीं? ज्ञान का प्रयोग होता है कि नहीं? होता है। इतना कीमती द्रव्य धोबीपने में दे रहा था, चक्षुइन्द्रिया वरणकर्म का उपयोग हो रहा था, कि नहीं? हो रहा था। पुण्य का नाश भी हो रहा था। बुद्धिपूर्वक, निर्बुद्धिपूर्वक हो रहा था और आयु कर्म को भी नष्ट कर रहा था। इसलिए दिगम्बर साध बनाया। अभी चित्त कहाँ विराजा है ? मैं क्यों प्रश्न कर रहा हूँ ? इसलिए कि चित्त को चित्त में रखा जाता है । श्रुत का प्रयोग श्रुत में। श्रुत से श्रुत विशाल होता है। दुग्ध से दुग्ध बढ़ता है। जो योगी अपने ज्ञान को अपने ही ज्ञान में लगाता है, वह परमानन्द का कारण बनता है। साधु बनने का सार बस इतना है। अपने ज्ञान को अपने ज्ञान में लगा देने का नाम साधु है, वही योगी है। योगी गंभीर होता है । योग यानी जोड़। जो निज के ज्ञान को निज में ही जोड़ देता है, वह परम योगी होता है, वे परम योगी जंगलों में निवास करते थे। अपने द्रव्य को अपने द्रव्य में संभाल लेना योगी है। ताकत की गोलियाँ किसको खानी पड़ती है ? ताकत की गोली किसी को खानी पड़ जाये जो अनंत शक्तिमान हो तो धर्म विरुद्ध है। ताकत की गोली वे ही खाये, जो निज की ताकत को बाहर ले जाये। विश्वास रखो, निज की शक्ति को निज में ही संचित कर लेना, तो ताकत की गोली खाने की आवश्यकता ही नहीं है। श्रुत को श्रुत में लगाना । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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