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________________ समय देशना - हिन्दी ११४ लगाने पर भी, तू सत्य को नहीं जानता। सत्य का व्याख्यान आप नहीं कर पाये। क्यों नहीं किया ? व्यवहार चल रहा है, उसे चलाते जाइये, लेकिन सभी के नेत्रों के नम्बर एक-से क्यों नहीं होते, ऐसा क्यों नहीं बोलते। अगर नहीं है, तो आपको कहना चाहिए कि जो मैं देख रहा हूँ वह सत्यार्थ नहीं है। आँख का नम्बर भिन्न है, वस्तु भिन्न है, दूसरे को दूर से काला दिख रहा था। इसलिए तत्त्व को अपनी बुद्धि से मत मापिये । आपका क्षयोपशम जैसा है, वैसा माप पाओगे, तत्त्व तो जैसा है, वैसा है। कोई यूँ कहे कि पेन कैसा है ? 'जैसा है, वैसा' कह देते तो पकड़े नहीं जाते। जब आपने एक भवन में बैठकर पेन को विपरीत रूप में जान लिया है तो सम्यक्त्व प्ररूपणा करना, यह संभव नहीं है । आकाश में विमान को उड़ते नहीं देखा क्या ? पर देखतेदेखते दिखता रहता है क्या? जितना दूर चला जाता है, उतना दूर दिखता है। दिखता है, फिर नहीं दिखता, फिर एक काला सा बिंदु दिखता है। सत्य को दूर से नहीं देखा जाता, सत्य को समीप से देखा जाता है। ध्रुव आत्मा और तन उन दो के बीच आत्मा को देखना चाहता है दूरी बनाकर आप आत्मा को नहीं देख सकते, क्योंकि दूरी से पदार्थ सत्य नहीं दिखता। आज निर्णय हो जाना चाहिए। आँख के नम्बर बता रहे हैं, कि सबके द्वारा प्रत्यक्ष देखे जाने पर भी भिन्न-भिन्न दिखता है। व्यवहार चलाने के लिए सब व्याख्यान कर लीजिए, पर सत्य मानिये, आप इस पेन को परिपूर्ण रूप से नहीं जान रहे हो। फिर जो-जो क्षयोपशम हीनाधिक है, तो जितने निकट होते गये, उतना ही स्वच्छ दिखता गया। यह कैवल्य की सिद्धि है। जो निज ध्रुव आत्मा के निकट पहुँचता है, वह कैवल्य को प्राप्त कर लेता है । तब सारा चराचर जगत् प्रत्यक्ष दिखता है। जो दूरी रखता है निजात्मा से, उसे सत्य दिखाई देता नहीं है। इसलिए, क्षयोपशम ज्ञानियो ! इतनी करुणा करना, कि अपने द्वारा जानी हुई वस्तु का सत्यार्थ निर्णय नहीं दे देना । इस काल में जितना आगम में लिखा है, उतना ही सत्यार्थ कहना। अपने निर्णय को सत्यार्थ कहने का त्याग कर देना, यदि शुद्ध सम्यग्दृष्टि हो तो। अपने द्वारा अनुभव किये हुए आगम के विषय पर सत्यार्थ मत नहीं देना । आगम में जितना लिखा है, उतना ही सत्यार्थ है । व्यक्ति की स्वतंत्र सत्ता का विनाश कहाँ हुआ ? स्वतंत्र सत्ता है कि आप सत्य को जान नहीं पा रहे हो। आगम को जानोगे तो अपनी ही सत्ता से जानोगे। जिसे जानोगे, वही स्वतंत्र सत्ता है। आगम परतंत्र कहाँ बना रहा है ? वह परतंत्र नहीं बनाता जो आगम स्वतंत्रता का ध्यान कराता है। स्वतंत्र सत्ता का ज्ञान आगम में नहीं मिलता, तो जितनी स्वतंत्रता से आपके सामने बोल रहा हूँ, वह सब बोल नहीं सकता था | आपने देखा होगा कि लोग लपेट-लपेटकर बोलते हैं। पर आज तक मैंने कोई लपेटकर नहीं बोला, पर यूँ कह दिया कि भ्रम से नहीं बोल रहा हूँ। क्योंकि आपका निर्णय झूठा हो सकता है, पर आगम का निर्णय झूठा नहीं हो सकता। जिव्हा के जिस स्थल पर नमक का स्वाद लिया जाता है, उस स्थल पर मिश्री का स्वाद नहीं लिया जाता। आप मिश्री की एक डली कण्ठ के समीप रखना। बताओ स्वाद कैसा है ? अन्दर चला जायेगा, लेकिन मिश्री का स्वाद नहीं ले पायेगा। क्यों ? दाँतों के पास में जिह्वा की नोक पर स्वतंत्र प्रदेश हैं, उन प्रदेश पर स्वाद आता है। तेरी आत्मा में तेरी तन के साथ इतनी ही भिन्नता है। पाँच इन्द्रियों में आत्मा है कि नहीं? पाँच इन्द्रियों में आत्मा है। एक स्थान से ही सम्पूर्ण इन्द्रिय का स्वाद क्यों नहीं ले लेती? ज्ञानी ! प्रत्येक इन्द्रिय के प्रदेश स्वतंत्र हैं। अखण्ड ध्रुव्र आत्मा होने पर भी अनुभव तद्विषय का तद्थान पर ही आता है, भिन्न स्थान पर भिन्न का स्वाद नहीं आता है। हे ज्ञानी ! शादी जिसकी हो रही है, दूल्हा वही कहलाता है और शादी की अनुभूति वही ले रहा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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