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समय देशना - हिन्दी
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जायेगा। मिथ्यात्व नहीं है, तो आज कुलिंगी कैसे दिख रहे हैं? जिनलिंग में दीक्षित होने के उपरान्त भी नाना परिणाम बुद्धि में चल रहे हैं। क्या यह सम्यक्त्वपना है, जो अनेक-अनेक अपनी-अपनी आम्नाय बना बैठे हैं? ये आम्नाय महावीर स्वामी के द्वारा बनाई हुई नहीं है। जितने पंथ आदि भेद चल रहे हैं, वह वर्द्धमान की वाणी में नहीं है। यह विडम्बना है मिथ्यात्व की । वर्द्धमान स्वामी ने तत्त्व प्ररूपणा की है, विपर्यास की प्ररूपणा नहीं की है। विपरीतपना प्ररूपित नहीं किया जाता है, विपरीतपना व्यक्ति स्वयं कर लेता है। आपकी जैन आम्नाय में जितने ग्रुप (गुट) हैं, ये सभी सत्य नहीं हैं; क्योंकि एक का कथन किया, अनेक का नहीं किया। तो मिथ्यात्व का विनाश ही तो सम्यक्त्व है, सम्यक्त्व का अभाव ही मिथ्यात्व है। यदि आपको सम्यग्दृष्टि जीव दिख रहे हैं, तो वे मिथ्यात्व की सूचना दे रहे हैं और जो मिथ्यादृष्टि दिख रहे हैं, वे सम्यक्त्व की सूचना दे रहे हैं।
"अर्पितानर्पितसिद्धेः" ___ एक को अर्पित, एक को अनर्पित। तो व्यवहार जो है वह अभूतार्थ है, और जो निश्चय है, वह भूतार्थ है। विभाव अभूतार्थ क्यों है ? निश्चय की अपेक्षा से व्यवहार अभूतार्थ है, परन्तु व्यवहार की अपेक्षा से है व्यवहार भूतार्थ है, । व्यवहार में निश्चय को अभेद करा दोगे तो वह निश्चय नहीं, अभूतार्थ हो जायेगा। अहो ज्ञानी ! मिट्टी का घट है, परन्तु घट घी का कहा जाता है । गाथा पढ़कर उसकी भूमिका को समझें। आप व्यवहार चलाने के लिए क्या कह रहे हो,यह आपका विषय है। आप जीवन जीने के लिए क्या बोलते हो, यह आपका विषय है। सत्य क्या है, यह समझिये।
घृतकुम्भाभिघानेऽपि कुम्भो घृतमयो न चेत् ।
जीवो वर्णादिमज्जीव जल्पनेपि न तन्मयः ॥४०॥ अ.अ.क. यह 'अध्यात्म अमृत कलश' है। घी का घट है, ऐसा कहने पर भी घृत का घट नहीं है । यह व्यवहारभासी यों ही कह देते हैं, कि व्यवहार चला गया। अरे ! व्यवहार कहीं भी नहीं चला गया। सत्यार्थ को समझो। मैं मना भी कर दूंगा, कि घी का घृत नहीं है, फिर भी आप घर में घृत का घड़ा ही बोलोगे। हे मुमुक्षु ! मिट्टी का कुंभ घृत नहीं होता, कुंभ में घृत रखा होता है। आधार-आधेय का उपचार होता है। जिसमें घृत रखा है, उस घड़े को लेकर आओ, या घी के घड़े को लेकर आओ। 'ये रिक्शा', रिक्शेवाले को बुला दिया। बोला- हे रिक्शा ! पानी की बाल्टी लेकर आओ। धन्य हो तुम्हारी लीला को । पर इतना तो ध्यान रखिये, कि व्यवहार चल रहा है। बराबर आप जी रहे हो, पर ये 'समयसार' ग्रन्थ है, उस व्यवहार में लिप्त मत हो जाना । निश्चय को भूल मत जाओ । कहीं पानी की बाल्टी ही नहीं समझ लेना । बाल्टी की स्वतंत्रता को समझो, वस्तु की स्वतंत्रता को भी समझो । व्यवहार कह रहा है, पानी की बाल्टी । मैं तुमसे पूछता हूँ, क्या किसी देश/राष्ट्र में, प्रान्त में, क्षेत्र में पानी की बाल्टियाँ भी बनती हैं ? पानी की कोई बाल्टी नहीं होती है। पानी की बाल्टी कहना असत्यार्थ है । बाल्टी धातु की है।
आत्मद्रव्य का वेदन नहीं कर पा रहे हो । पत्तल परोसो, कि पत्तल में परोसो, आप क्या परोसते हो ? पत्तल नहीं खाई जाती है, भोजन खाया जाता है। तन चेतन नहीं है, तन में चेतन है। फिर भी चेतन में तन नहीं है। पत्तल में भोजन है, पर भोजन में पत्तल नहीं है। तन में शुद्धात्मा हो सकती है, पर शुद्धात्मा में तन नहीं होता है। शुद्धात्मा में तन हो गया तो अशरीरी भगवान्-आत्मा में तन हो जायेगा। भोजन में पत्तल नहीं होती है। पत्तल व भोजन में अभूतार्थपना है। भोजन का स्वाद भिन्न है, पत्तल का स्वाद भिन्न है। पत्तल के
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