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________________ के अनुसार ५३१ गाथायें हैं । इन दो प्रसिध्द संस्कृत टीकाओं के अतिरिक्त पं. जयचन्द्र छाबडा कृत भाषावचनिका (१८०७ई.) महत्त्वपूर्ण है। आधुनिक समय में श्री गणेश प्रसादजी वर्णी एवं श्री मनोहरलाल जी वर्णी आदि द्वारा लिखित ठीकाणे भी महत्त्वपूर्ण हैं । दिगम्बर आचार्य परम्परा में उत्कृष्ट क्षयोपशमज्ञानी आत्मानुभवी आचार्य विशुद्धसागरजी महाराज का नाम प्रत्येक स्वाध्यायी की जिह्वा पर विराजमान है । उन्होंने समयसार पर जो प्रवचन किये, उन्हीं का संकलन समयदेशना में किया गया है । आचार्यश्री ने समयदेशना में समयसार की गूढ गुत्थियों को सहज ही सुलझा देने का भगीरथ प्रयास किया है । इस प्रयास में उन्होंने कहीं तर्क का आश्रय लिया है तो कहीं अनुभव की कसौटी पर परखा है । विषय की सांगोपांग उपस्थिति में अन्य शास्त्रोंके संदर्भोने उनका सहयोग किया है। आचार्य विशुध्दसागर कृत समयसार देशना में पदे-पदे ऐसे छोटे-छोटे वाक्य दृष्टिगोचर होते हैं जिनमें अर्थसागर समाया हुआ है । इस प्रसंग में कतिपय प्रसंग द्रष्टव्य हैं । ‘भवातीत होता है तो भव का अभिनन्दन बन्द करो ।' 'जितने व्याख्यान हैं, वे परसमय हैं। जी व्याख्यानातीत हैं, वे स्व-समय हैं ।' जैन दर्शन में वस्तुतत्त्व के ज्ञान के साधन के रूप में प्रमाण और नयों को स्वीकार किया गया है । नयों की नासमझी ने समाज में वैमनस्य उत्पन्न किया है । आचार्यश्री विशुध्दसागर जी महाराज ने समयदेशना में निश्चय एवं व्यवहार दोनों नयों का आश्रय लेकर समाज में पनप चुके विवादों के शमन का अनायस ही प्रयाप्त किया है । समयदेशना की सबसे बड़ी विशेषतः यह है कि यह प्रामाणिक एवं परम्परापुष्ट है । इसमें समयसार की टीकाओं, पंचास्तिकाय, तत्त्वार्थवार्तिक, बृध्दद्रव्यसंग्रह, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, समाधितन्त्र, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, मूलाचार, स्वरूप-संबोधन, परीक्षामुख, इष्टोपदेश, भावनाद्वात्रिंशतिका, नियमसार आदि अनेक ग्रन्थों को भूरिशः ससम्मान उद्धृत किया गया है । समयसार के प्रवचन के रूप में आचार्यश्री विशुध्दसागरजी कृत समयदेशना वास्तव में एक सार्थक प्रयास है, जो अध्यमन, चिन्तन एवं मनन के क्षेत्र में एक मानक स्थापित करेगा । समयदेशना के सम्पादन के लिए ग्रन्थ की आद्यन्त वाचना की गई । वाचना के समय पिष्ठपेषण से बचने के लिए तथा विषय की सुस्पष्टता के लिए कतिपय अंशो को परिवर्तित या परिवर्धित करना पड़ा । आचार्यश्री से स्थान-स्थान पर विचार-विमर्श करके उनके मन्तव्य को सुरक्षित रखने का पूरा-पूरा प्रयास किया गया है । फिर भी भूलें रहना हीन क्षयोपशमजन्य हैं । इसमें जो कुछ अच्छाई है, वह आचार्यश्री की है । कमियों का उत्तरदायित्व हमारा है । कमियों/त्रुटियों के लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं । समयदेशना के वाचन के अवसर प्रो. वृषभप्रसाद जैन लखनऊ, डॉ. श्रेयांसकुमार जैन बडौत, इंजिनिअर जिनेन्द्रकुमार जैन भोपाल, इंजि. श्री दिनेश जैन भिलाई, की महनीय भूमिका रही है । इन सब महानुभावों के साथ मुझे भी आचार्य श्री का मंगल आशीर्वाद मिले, यही हमारी कामना है । संस्कृत विभाग, एस.टी.कॉलेज मुजप्फरनगर २७ एप्रिल, १० जयकुमार जैन अध्यक्ष श्री अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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