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________________ आमुख समयदेशना : एक अमृत-कलश समयो खलु णिम्मलो अप्पा (निश्चये ते निर्मलआत्मा ही समय है ।) - रयणसार ।१५८ समयसार चिद्ज्योति स्वरुप है । समय का वर्णन करने वाला यह समय पाहुण ग्रन्थ है। जो निजानन्द में लवलीन आत्मा है, वह समयसारभूत आत्मा है । __ - समयदेशना । १० जीव के दो भेद हैं - संसारी और सिद्ध, शरीर सहित सभी जीवों को संसारी कहते हैं । संसारी जीव अनादिकाल से मुहुर्महु जन्म-मरण करते हुए नित्य नये-नये शरीर धारण करते आ रहे हैं । शरीर-सन्ततिका उच्छेद करने में वे आज तक समर्थ नहीं हो सके हैं । जिनका चित्त मोह-क्षोभ अर्थात मिथ्यात्व एवं राग-द्वेषादि मल से मलिन होता है, वे संसार-संसेरण से कभी मुक्त हो भी नहीं सकते, जो विकार, वियाण या मलिनस्म परिणतिसे बचनेका पुरुषार्थ करते हैं, वे ही एक दिन पंच परावर्तन रुप श्रृंखला को तोड़कर सिध्दालयमें विराजमान हो जाते हैं और उसके बाद वह स्वात्मा के सदाबहर आनन्द का सदाकाल अनुभव करते रहते हैं । वे फिर कभी संसार में लौटकर नहीं आते जन्म मरण के चक्र से मुक्त जीव ही सिध्द कहलाते हैं । इसी बात को संक्षेप में यों भी कहा जा सकता है कि जीव की अशुद्ध दशा का नाम संसार और शुद्ध दशा का नाम मुक्ति है । जैनदर्शन में संसारी और मुक्त या सिद्ध, इन दोनों ही जीवों का वर्णन मिलता है , जीव की शुद्ध, दशा का कथन जिस दृष्टि से होता है, उसे अध्यात्म कहते है. तथा जिस पध्दति से अशुद्ध दशा का वर्णन किया जाता है, उसे सिद्धान्त कहते हैं । किसी भी भव्यात्मा को अपने दोषों ही स्वरुप के बारे में जानना आवश्यक है । कहा भी गया है 'बिन जाने वा दोष गुणन को, कैंसे तजिए -गहिए ।' सिध्दान्त और अध्यात्म परस्पर विरोधी नहीं, एक-दूसरे के पूरक है । सिध्दान्त का ज्ञान साधन है तो अध्यात्म का ज्ञान साध्य है । कारणों को मिलाए बिना कभी कार्य की सिद्धि नहीं होती, अशुद्धि को जानकर उसे दूर करने का पुरुषार्थ करेंगे, तभी तो शुद्ध दशा को प्राप्त हो सकेंगे, आत्मा पर मलिनता का कितना ही घना आवरण पड़ा हो, उसे बुद्धीपूर्वक श्रम करते हुए हटाकर विशुद्धात्मा के दर्शन हो सकते हैं, मन में यदि यह विश्वास नहीं होगा, तो भी काम बनने वाला नहीं है । अध्यात्म के गीत गाने मात्र से कोई आध्यात्मिक नहीं होता । उसे सिद्धान्त का ज्ञान प्राप्त कर जीवन में उसका प्रयोग (संयम या व्यवहार चारित्र का पालन) भी करना अनिवार्य है। आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित 'समयसार' जैनाध्यात्म का एक सिरमौर ग्रन्थ है । इसी एक ग्रन्थ के कारण आचार्य कुन्दकुन्द को युगप्रवर्तक साधु माना जाता है तथा भगवान महावीर और गौतम गणधार के बाद सभी लोग उनके नाम का श्रध्दा से स्मरण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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