SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सैंधव यक्ष चित्रों में दिखलाया गया तीन अथवा अनेक सिरों वाला यह प्राणी कोई नया जन्तु नहीं, जैन ज्योतिष्क का यक्ष है जो अपना क्षेत्र नियत करके उसकी सुरक्षा करता है। यहाँ इसके तीन सिर दिखलाए गए हैं जो अधिक होना भी संभव हैं। animandinimumnimes SSS SHAR SOS 386 इन सीलों पर लिखी पुरालिपि इस बात का प्रमाण है कि जैन ज्योतिष्क की मान्यता उस सैंधव काल में भी वैसी ही थी जैसी अब। ऐसा ही एक यक्ष अंकन हमें भारत सरकार के आर्केलाजिकल विभाग व्दारा सुरक्षित श्रमण बेलगोला की विन्ध्यगिरि पर उकेरित, किन्तु घोर उपेक्षित दिखा है जिसकी लंबाई चौड़ाई लगभग 1-1 मीटर है। वह निश्चित ही सैंधव युगीन है और आश्चर्य का विषय है कि पुराविदों ने उस पर अब तक भी ध्यान क्यों नहीं दिया। 387 नंबर की सील जैन अध्यात्म की सुंदरतम अभिव्यक्ति है। पीच्छी के ऊपर यूनिकाने वाला रत्नत्रय है जिसके ऊपरी सिरे के 5 पत्र पंचपरमेष्ठी के द्योतक हैं। बाजू के दो पत्र मिलकर सप्त तत्व और नीचे के दो मिलाकर नौ पदार्थ का चिंतन कराते हैं। नीचे छिपे दो फल निश्चय व्यवहार धर्म के बोधक हैं। पूरा लेखः एक गृहस्थ ने स्वसंयम धारकर तप हेतु रत्नत्रय स्वीकारा और पंचपरमेष्ठी आराधन करते सप्ततत्व, नौ पदार्थ चिंतन निश्चय व्यवहार धर्म की शरण लेकर किया। सल्लेखना ली, और घातिया चतुष्कक्षय से भव चक के पार हुआ। __ ये सीलें मूल जिनधर्म प्रभावी होने के कारण अन्य किसी विधि से पढ़ी नहीं जा सकती हैं। 234 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004058
Book TitleSaindhav Puralipime Dishabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSneh Rani Jain
PublisherInt Digambar Jain Sanskrutik Parishad
Publication Year2003
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy