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तीर्थराज शिखर जी पर तीर्थ यात्रियों को एक भजन अवश्य यदा कदा सुनाई दे जाता है जो वहाँ के आदिवासी गाते हैं :
" बाबा भला बिराजा जी, बाबा भला बिराजा जी ! साँवरिया पारसनाथ शिखर पर भला बिराजा जी ! ऊँचा नीचा पर्वत सोहे जहाँ देव का वासा चार खण्ड पर आन बिराजे तीन लोक के दाता
बाबा भला बिराजा जी, बाबा भला बिराजा जी !
माताएं भी इसे लोरी के रूप में बच्चों को गा गाकर सुलाती हैं।
इसके शब्दों पर गौर करने से हमारी तीन पावन टोंकों का रहस्य खुलता सा दिखता है। चार खण्ड अर्थात चौथी टोंक अथवा शिखर । अर्थात पार्श्वनाथ चौथी टोंक से मोक्ष गए और उनसे पूर्व काल में वह वहाँ की तीन टोंकों के लिये प्रसिध्द था। पार्श्वनाथ से पूर्व तीर्थकर नेमिनाथ गिरनार से मोक्ष गए प्रसिध्द हैं । तब पार्श्वनाथ से पूर्व कालीन तीन खण्ड अथवा तीन शिखर स्वयमेव इक्कीसवें तीर्थंकर नमिनाथ के काल तक के होना अभिव्यक्त हो जाते हैं। तभी से इन तीन टोंकों की प्रसिध्दि है यह संकेत हमें मिल जाता है। मुख पृष्ठ पर दर्शाया गया चित्र पार्श्वनाथ टोंक की सीढ़ियों से लिया गया शिखर जी तीर्थ क्षेत्र का विहंगम दृश्य है जिसे सैंधव तीर्थ यात्रियों ने पर्वत की चढ़ाई पार करते हुए अथवा उतरते समय अवलोकित किया होगा। उस युग के कलाकार ने वे श्रृंग उसी की स्मृति में उकेरे हैं ऐसा आभास देते हैं।
उन श्रृंगों पर श्रमणों ने तपस्या की है जिसे श्रृंग की चोटी पर रखी पिच्छी से दर्शाया गया है
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जापें की हैं ,
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उन्होंने अपने गुणस्थान उन्नत किए हैं .M
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और समाधि मरण किये हैं।
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ऐसा शाश्वत तीर्थ सदैव स्मरणीय है और रहेगा।
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