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सैंधव वर्णमाला
पुरातत्त्वज्ञों द्वारा दी गई सैंधव वर्णमालाएं आपस में भिन्नता रखती हैं। वे सब संकेताक्षर और चित्राक्षर है। प्रथम तो इन वर्णमालाओं का बिना किसी आधार के बनाया जाना ही बड़ा दूभर कार्य था । दूसरे भिन्न-भिन्न लिपिकों के हाथों से उकेरी जाने के कारण संकेतों में थोड़ी बहुत भिन्नता हमारे पुरातत्त्वज्ञों को बिना मूल अध्यात्म का ज्ञान पाए कर पाना बेहद कठिन बात थी । सौभाग्य से उनके हाथ कम्प्यूटर लगते ही चित्रों / संकेतों का आंकलन ग्राफिक्स से किया गया उसमें थोड़ी सी भी आकृति की हेर फेर ने सैंधव वर्णमाला को अत्यंत जटिल बना दिया ।
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गुत्थी सुलझाने भाषाविद् सामने आ गए तो उनका पूर्वाग्रह उनके परिश्रम को कई गुना बढ़ा गया क्योंकि वे सभी वेदों पुराणों, गायत्री मंत्रों और अनुष्टुप छंदों में मूल लिपि की सुंगध खोजते रह गये भारत की इस मूल लिपि ने विश्व को ऐसा प्रभावित किया कि समूचा विश्व (अमरीका, रूस, यूरोप, चीन, मध्यदेश आदि) भारत में अपने मूल अस्तित्व को खोजता दौड़ा आया क्योंकि, भारत प्राचीन काल से ही ज्ञान की मशाल प्रसिद्ध रहा है। उसे सबने सदैव सोने की चिड़िया इसलिए माना क्योंकि यहाँ की जलवायु अत्यंत अनुकूल पशु पक्षी पौधे फसलें, वन, फल-फूल सदैव आकर्षण का केन्द्र रहे। नदियां पर्वत, कछार : मुहाने, समुद्र सभी ने मिलकर इसे ऐसा देश बना दिया है कि विश्व के सारे मौसम, सारी उपजें, सारी संस्कृतियाँ, सारा वैभव इसी के घेरे में प्रतिबिबित हो उठे हैं सारी मानव प्रजातियां दीर्घ काल से यहाँ समायी हुई हैं फिर भी सभी अपने आप में स्वस्थ सुरक्षित हैं । इससे ही सारे धर्म यहाँ स्पन्दित हैं परन्तु सभी स्वतंत्र और अलग-अलग हैं । कभी किसी ने दूसरे को दबाना भी चाहा तो भी उसे मिटा नहीं सका। कितनी ही संस्कृतियाँ आयीं और गई किन्तु मूल संस्कृति फिर भी अक्षुण्ण बनी रही। यहाँ गरीब भी प्रसन्न थे और धनी भी । उल्टे धनिकों ने त्याग मार्ग स्वीकार कर धन को ठुकराया. दान किया । त्यागा और तप की ओर मुड़ गये । तीर्थकरों के पथ पर राम ने वनवास काटा। पाण्डवों ने राज पाट त्यागा । बची रहीं सब निधियाँ सदा से इसे धनांधों के लिए "सोने की चिड़िया" बना गईं । अंग्रेजों ने भारत छोड़ा, तो उसे खोखला कर दिया था, किन्तु भारत की उर्वरा भूमि ने संतति को पुनः संभाल दिया । इस धरती पर अहिंसा का साम्राज्य ही सदैव रहा वरना जब-जब अहिंसा छूटी धरती ने करवटें बदलीं । आज पुनः उस कृषि प्रधान देश के गोधन पर भयंकर खतरा उपजा है । पक्षियों, मुर्गियों, बटेरों, भेड़ों, बकरों, मछलियों पर भी इंसान हैवान बनकर हावी हुआ है । इसका संकेत सुखद नहीं है । ऐसी परिस्थितियों में भला कैसे कोई सैंधव लिपि का अर्थ समझेगा ? अतः सबने उसे अपनी-अपनी तरह से पढ़ने के प्रयास किए और सब हारते गए । अध्यात्म की भाषा ने अपना रहस्य अध्यात्म से खोला और इसे पढ़ लिया गया है । अवलोकनार्थ विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुत की गई संकेताक्षर सूचियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं यथा :
श्री माधो सरुप वत्स द्वारा प्रस्तुत की गई संकेताक्षर सूची
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2 श्री मार्शल द्वारा प्रस्तुत की गई संकेताक्षर सूची
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श्री पोसेल द्वारा प्रस्तुत की गई संकेताक्षर सूची
श्री महादेवन के व्दारा तैयार की गई कान्कार्डेस भी समुचित उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करती है। उसे यहाँ
नही दर्शाया गया है क्योंकि वह उपरोक्त सूचियों पर ही आधारित है ।
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