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निक्षेपवाद मानव अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए भाषा का प्रयोग करता है। बिना भाषा के वह अपने विचार सम्यक् प्रकार से अभिव्यक्त नहीं कर सकता। मानव और पशु में एक बहुत बड़ा अन्तर यही है कि दोनों में अनुभूति होने पर भी पशु भाषा की स्पष्टता न होने से उसे व्यक्त नहीं कर पाता जबकि मानव अपने विचारों को भाषा के माध्यम से भली-भाँति व्यक्त कर सकता है।
विचारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है भाषा। भाषा की संरचना का आधार शब्द है। एक ही शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। वक्ता द्वारा प्रयुक्त शब्द का नियत अर्थ क्या है इसे ठीक रूप से समझ लेना जैन दर्शन की भाषा में निक्षेपवाद कहा जाता है। निक्षेप का लक्षण जैन दार्शनिकों ने इस प्रकार बताया है कि शब्दों का अर्थों में और अर्थों का शब्दों में आरोप करना, न्याय करना अर्थात् जो किसी एक निश्चय या निर्णय में स्थापित करता है उसे निक्षेप कहते हैं। श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यक भाष्य में बताया है ' 'नि' का अर्थ है 'नियत' और 'निश्चित' | 'क्षेप' का अर्थ है' न्यास करना। वक्ता शब्द द्वारा जिस भाव को प्रकट करना चाहता है, उस भाव को, उस शब्द में फिट करना, अथवा स्थापना करना निक्षेप है। निक्षेप के प्रकार :
तत्त्वार्थ सूत्र में आचार्य उमास्वाति ने कहा है 'नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यासः' ।।5।।
जीवादि तत्वों का नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव रूप से न्यास किया जाय वह निक्षेप होता है। अत: निक्षेप के मुख्य रूप से चार प्रकार हैं - 1. नाम निक्षेप, 2. स्थापना निक्षेप, 3. द्रव्य निक्षेप और 4. भाव निक्षेप।
1. नाम निक्षेप :- किसी पदार्थ या व्यक्ति का गुण आदि पर विचार किये बिना लोक व्यवहार चलाने के लिए स्वेच्छा से नाम रख देना नाम निक्षेप है। जैसे किसी का नाम महावीर रख देना। पर उसमें महावीर जैसे गुण नहीं है। वह तो कायर और निर्बल है। यह नाम तो लोक व्यवहार में उसे जानने के लिए संकेतात्मक है। नाम निक्षेप में केवल व्यक्ति या पदार्थ की संज्ञा (नाम) अपेक्षित होती है।
2. स्थापना निक्षेप :- जिस निक्षेप में मूल पदार्थ या व्यक्ति की प्रतिकृति, मूर्ति या चित्र में उस नाम की स्थापना कर देना स्थापना निक्षेप कहलाता है। स्थापना निक्षेप के दो भेद हैं :
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