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____a) तदाकार स्थापना और b) अतदाकार स्थापना। इन्हें सद्भाव स्थापना और असद्भाव स्थापना भी कहते हैं।
a) तदाकार स्थापना :- किसी वस्तु की उसी के आकार वाली दूसरी वस्तु में स्थापना करना तदाकार स्थापना है। जैसे अपने गुरू के चित्र को गुरू मानना। ___b) अतदाकार स्थापना :- जो किसी तरह गुरु के आकर के नहीं है फिर भी उन शंख स्थापनाचार्य आदि में अपने गुरू का आरोप कर लेना अतदाकार
स्थापना है। 3. द्रव्य निक्षेप :- अतीत और अनागत पर्याय को लक्ष्य में रखकर पदार्थ में वैसा व्यवहार करना द्रव्य निक्षेप है | जैसे पहले कभी राजा अथवा मंत्री रहे हुए व्यक्ति को वर्तमान में राजा या मन्त्री कहना। यह अतीत पर्याय की दृष्टि से कहा जा सकता है। जो भविष्य में वैसा बनेगा- उस भावी पर्याय को दृष्टि में रखकर वर्तमान में वैसा कहना - जैसे युवराज को राजा शब्द से सम्बोधित करना। यह द्रव्य निक्षेप है।
4. भाव निक्षेप :- सम्पूर्ण गुण युक्त पदार्थ या व्यक्ति को उस रूप में मानना भाव निक्षेप कहलाता है। यह वर्तमान पर्याय का तथा गुण सम्पन्नता को महत्व देता है। अतीत और अनागत पर्याय को स्वीकार नहीं करता। जो पहले राजा था या आगे राजा होगा वह इस भाव निक्षेप की दृष्टि में राजा नहीं कहा जा सकता। जो वर्तमान में सिंहासनारूढ़ होकर राज्य का संचालन कर रहा हो वही भाव निक्षेप से राजा है।
इस प्रकार निक्षेप पदार्थो का ज्ञान कराने का एक साधन है। पदार्थ के स्वरूप को सही रूप में समझने के लिए निक्षेप के सिद्धांत की उपयोगिता है। यह पद्धति तत्त्वज्ञान या शास्त्र समझने के लिए जितनी उपयोगी है, व्यवहार में भी उतनी उपयोगी है। हम व्यवहार में इन चारों का उपयोग करके अपना इच्छित अभिप्राय दूसरों को समझा सकते हैं।
राजा
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