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वर्तमान
भिखारी भिक्षा लेने जा रहा है।
नहीं चलता है, व्यवहार के लिए तो बर्तन विशेष का नाम ही लेना पडता है, जैसे थाली ला'। यह नय संग्रह नय के कथन में भेद करता है। इसमें विशिष्ट गुण को प्रधानता दी जाती है। दूसरों शब्दों में कहा
जाय तो लौकिक व्यवहार के अनुसार विभाग करने वाले विचार को व्यवहार नय कहते हैं।
4. ऋजुसूत्र नय :- वर्तमान क्षण में होनेवाली पर्याय को मुख्य रूप से ग्रहण करने वाले नय को ऋजुसूत्र नय कहते हैं। इसमें पदार्थ की वर्तमान पर्याय को ही ग्रहण किया जाता है भूत और भविष्य को गौण कर दिया जाता है, जैसे - कोई कभी सेठ रहा हो किन्तु वर्तमान में वह | भिखारी हो जाए तो उसे इस नय की अपेक्षा से सेठ नहीं कहेंगे, भिखारी ही कहेंगे।
5. शब्द नय :- काल, कारक, लिंग, संख्या, पुरूष और उपसर्ग आदि के भेद से शब्दों में अर्थभेद का प्रतिपादन करनेवाले नय को शब्द
नय कहते हैं, या जो नय लिंग, वचन, व कारक आदि के दोषों को दूर करके पदार्थ का कथन करता है उसे शब्दनय कहते हैं। जैसे मेरू था, मेरू है और मेरू होगा। उक्त उदाहरण में शब्द नय भूत, भविष्य वर्तमान काल के भेद से मेरू पर्वत को तीन रूपों में ग्रहण करता है । वर्तमान को मेरू है, अतीत का ओर था और भावी का ओर ही होंगा। काल पर्याय दृष्टि से यह भेद है। अत: व्याकरण की लिंग, वचन, काल आदि की अनियामकता को यह प्रमाण नहीं करता। इसका अभिप्राय है - 1. पुल्लिंग का वाच्य अर्थ स्त्रीलिंग का वाच्य अर्थ नहीं बन सकता। और स्त्री लिंग का वाच्य अर्थ नपुंसक लिंग नहीं बन सकता है।
पहाड का जो अर्थ है वह पहाडी शब्द से व्यक्त नहीं हो सकता क्योंकि जहाँ लिंग भेद होता है वहाँ अर्थ भेद भी होता है जैसे पुत्र और पुत्री में।
__एक वचन का जो वाच्यार्थ है वह बहुवचन का वाच्यार्थ नहीं हो सकता। यदि ऐसा होता तो मीना छात्रा है के स्थान पर मीना छात्राएँ है', भी प्रयोग शुद्ध गिना जाता ।
यह नय एक लिंग वाले पर्यायवाची शब्दों में भेद नहीं मानता। जैसे एक ही अर्थ के बोधक - राजा,नृपति, भूपाल, नृप, भूपति आदि ये सारे शब्द एक ही व्यक्ति के सूचक मानता हैं। ये शब्द नय हुआ।
6. समभिरूढ नय :- पर्यायवाची शब्दों में भी व्युत्पत्ति के आधार पर भिन्न अर्थ को माननेवाला नय समभिरूढ नय है। इस नय में जो शब्द जिस रूढ अर्थ में प्रयुक्त है, उसे उसी रूप में
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