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संग्रह नय
नैगम नय के दो प्रकार हैं:अ) सर्वग्राही और आ) देशग्राही।
अ. सर्वग्राही नैगम नय :- सामान्य अंश का आधार लेकर प्रयुक्त होने वाले नय को सर्वग्राही नैगम नय है - जैसे यह घड़ा है।
आ. देशग्राही नैगम नय :- विशेष अंश का आश्रय लेकर प्रयुक्त होने वाले नय को देशग्राही नैगमनय कहते है। जैसे यह घड़ा सोने का है या चाँदी का है।
ये वर्तन हैं। 2. संग्रह नय : जिस नय में समूह की अपेक्षा से पदार्थ का विचार
किया जाता है या अलग अलग पदार्थों के इकट्ठा हो जाने पर उस समुदाय को एक शब्द में कहना उसे संग्रहनय कहते हैं। जैसे बगीचा, बर्तन आदि। बर्तन शब्द जिन के लिए सामान्य रूप से उपयोग में आता है, जैसे थाली, गिलास, चम्मच, कटोरी आदि इन सबका संग्रह रहने से सबका कथन हो जाता है। इसमें पदार्थ के विशेष गुण को गौण कर सामान्य गुण को प्रधानता दी जाती है। यह वस्तु में अभेद मानता है क्योंकि यह सम्पूर्ण जाति की चर्चा करता है।
संग्रहनय के दो भेद है :a) पर - संग्रह नय और b) अपर - संग्रह नय
a) पर-संग्रहनय :- सत्ता मात्र को ग्रहण करने वाला नय पर-संग्रह नय कहलाता है। जैसे सारा विश्व एक है क्योंकि सब सत् यानि की सबका अस्तित्व है।
b) अपर-संग्रह नय :- जीव अजीव आदि अवान्तर सामान्य को ग्रहण करने वाला और उनके भेदों की उपेक्षा करने वाला अपर संग्रह नय है। जैसे जीव कहने से सब जीवों का ग्रहण तो हुआ परन्तु अजीवादि का ग्रहण नहीं हो सका। उसमें एक पर्याय रूप से समस्त पर्यायों का, द्रव्य रूप से समस्त द्रव्यों का, गुण रूप से समस्त गुणों का, मनुष्य रूप से समस्त मनुष्यों इत्यादि का संग्रह किया जाता है।
___3. व्यवहार नय :- संग्रहनय के द्वारा गृहीत अर्थों का विशेषता के आधार से विधिपूर्वक विभाग करने वाला व्यवहार नय है। जैसे संग्रह नय में बर्तन कहा गया जिसमें थाली, गिलास आदि सब आ गये किन्तु व्यवहार नय की अपेक्षा से थाली को थाली, गिलास को गिलास आदि कहा जाता है। जैसे 'बर्तन ला' ऐसा कहने से व्यवहार
यह थाली है।
व्यवहार नय
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