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________________ जलती है, रास्ता नहीं जाता है, पथिक जाते हैं। परन्तु नैगमनय की दृष्टि में ये सारे औपचारिक कथन सत्य हैं। __ शब्दों के जितने अर्थ लोक-प्रचलित हैं उन सबको मान्य करना नैगम नय का विषय है। “नैगम नय' पदार्थ को सामान्य, विशेष और उभयात्मक मानता है। सभी वस्तुएँ सामान्य और विशेष दोनों धर्मों से युक्त होती हैं। उनमें जाति आदि सामान्य धर्म हैं और विशेष प्रकार के भेद करने वाले विशेष धर्म है। कल्पना कीजिए, सौ घडे पडे हुए हैं। उनमें 'ये सब घड़े हैं' यह जो ऐक्य बुद्धि है वह सामान्य धर्म से होती है। यह मेरा घडा है इस प्रकार सभी लोग अपने अपने घड़ों को पहचान ले, यह विशेष धर्म से होता है। नैगमनय वस्तु को इन उभय गुणों से युक्त मानता है। नैगमनय के तीन रूप बनते हैं - 1. भूत नैगमनय, 2. भविष्य नैगमनय, और 3. वर्तमान नैगमनय a) भूत नैगम नय :- अतीतकाल का वर्तमानकाल में सम्बोधन (संकल्प) करना भूत नैगम नय है। जैसे यह कहना कि “आज महावीर जन्म कल्याणक है | यहाँ आज का अर्थ है -वर्तमान दिवस, परन्तु उसमें संकल्प लगभग छबीस सौ वर्ष पहले के दिन का किया गया है। b) भविष्य नैगम नय :- भविष्य का वर्तमान में संकल्प करना भविष्य नैगम नय है - जैसे पद्मनाभ स्वामी अभी तीर्थंकर हुए नहीं, भविष्य में होंगे, लेकिन उन्हें अभी से ही तीर्थंकर मान लेना-पूजा-स्तुति स्तवनादि करना। यहाँ भविष्य में होनेवाली तीर्थंकर पर्याय को वर्तमान में कह दिया गया है। c) वर्तमान नैगम नय :- जिस कार्य को प्रारंभ कर दिया गया हो परन्तु वह अभी तक पूर्ण नहीं हुआ हो फिर भी उसे पूर्ण कह देना अर्थात् क्रियमाण को कृत कहना वर्तमान नैगमनय है ! जैसे बम्बई जाने के लिए घर से रवाना हुए व्यक्ति के विषय में पूछने पर यह कहना कि वह बम्बई गया है। यद्यपि अभी वह व्यक्ति स्थानीय स्टेशन पर ही है या मार्ग में ही है। Aanemasti
SR No.004055
Book TitleJain Dharm Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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