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________________ न्यूक्षःप्रमाण मन:पर्यय ज्ञान प्रमाण मन:पर्यवज्ञान मन:पर्यवज्ञान का अर्थ है - प्राणियों के मन के चिन्तित अर्थ को जानने वाला ज्ञान। अढाई द्वीप में रहे हुए संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मनोगत भावों को जानने वाल ज्ञान मन:पर्यवज्ञान है। यह ज्ञान मनुष्य गति के अतिरिक्त अन्य किसी गति में नहीं होता है। संयम की विशुद्धि से ही यह ज्ञान प्राप्त होता है। जो संयमी हो, उन्हें भी सबको नहीं होता, अपितु जो अप्रमत्त संयमी हो और उनमें भी जो विविध प्रकार के ऋद्धियों से सम्पन्न हो अर्थात जो पुणे के ज्ञान के धारक. आहारकलब्धि. वैक्रियलब्धि, तेजोलेश्या, जंघाचारण, विद्याचरण आदि विशिष्ट ऋद्धियुक्त लब्धियों में से किन्हीं लब्धियों से युक्त हो, उन्हें ही मनःपर्यव ज्ञान होता है। मन एक प्रकार का पौद्गलिक द्रव्य है। जब व्यक्ति किसी विषय विशेष का विचार करता है तब उसका मन नाना प्रकार की पर्यायों में परिवर्तन होता रहता है। मन:पर्यवज्ञानी मन की उन विविध पर्यायों को आत्मा के द्वारा जान लेता है कि व्यक्ति इस समय यह चिंतन कर रहा है। यह ज्ञान मनपूर्वक नहीं होता किन्तु आत्मपूर्वक होता है। मन:पर्यवज्ञान के भेद इसके दो भेद हैं - 1. ऋजुमति मन:पर्यवज्ञान 2. विपुलमति मन:पर्यवज्ञान a) ऋजुमति - दूसरे के मनोगत भावों को सामान्य रूप से जानना ऋजुमति मन:पर्यवज्ञान कहलाता है। जैसे कोई व्यक्ति घट के बारे में चिंतन कर रहा है तो ऋजुमति मन:पर्यवज्ञानी यह तो जान लेता है अमुक व्यक्ति घट का चिंतन कर रहा है पर वह यह नहीं जान पाता है कि घट का आकार क्या है, किस द्रव्य से बना हुआ है, मिट्टी से बना हुआ है या सोने से बना हुआ है आदि आदि। यह ज्ञान आने के बाद विलुप्त भी हो सकता है। b) विपुलमति - दूसरे के मनोगत भावों को विशेष रूप से जानना विपुलमति मन:पर्यवज्ञान कहलाता है। जैसे किसी व्यक्ति ने घट के बारे में चिंतन किया तो विपुलमति मन:पर्यवज्ञानी केवल घट मात्र को नहीं जानेगा अपितु उसके देश, काल आदि अनेक पर्यायों को भी जान लेगा। इस व्यक्ति ने जिस घट का चिंतन किया है वह सोने से बना हुआ है, राजस्थान में बना हुआ है आदि-आदि। इस प्रकार विपुलमति का क्षयोपशम इतना विशिष्ट होता है कि यह अचिंतित या अर्धचिंतित Posgaa-Baisalese -29
SR No.004055
Book TitleJain Dharm Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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