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वर्द्धमान
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2. अनानुगामी अवधिज्ञान - जो अवधिज्ञान जिस क्षेत्र में उत्पन्न होता है, उसी स्थान पर स्थित होकर पदार्थ को देख सकता है, उस क्षेत्र को छोडकर अन्यत्र जाने पर साथ-साथ नहीं जाता वह अनानुगामी अवधिज्ञान कहलाता है। जैसे दीपक जहाँ स्थित हो वहीं से वह प्रकाश प्रदान करता है, पर किसी प्राणी के साथ नहीं चलता। वैसे यह अननुगामी
अवधिज्ञान जहाँ उत्पन्न हुआ है वहीं रहकर जान सकता है अन्यत्र नहीं।
3. वर्धमान अवधिज्ञान - जो अवधिज्ञान उत्पन्न होने के बाद बढता रहता है वह वर्धमान अवधिज्ञान है। जैसे जैसे अग्नि में ईंधन डाला जाता है वैसे-वैसे वह अधिकाधिक प्रज्वलित होती है तथा उसका प्रकाश भी बढ़ता जाता है। इसी प्रकार ज्यों-ज्यों परिणामों में विशुद्धि बढ़ती जाती है त्यों-त्यों अवधिज्ञान के माध्यम से देखे जा सकने वाले क्षेत्र
और काल भी वृद्धि प्राप्त होते जाते है। 4. हीयमान अवधिज्ञान - जो अवधिज्ञान उत्पन्न होने के बाद घटता रहता है वह हीयमान अवधिज्ञान है। जिस प्रकार घी ईंधन आदि के अभाव में आग धीरे धीरे मंद पड जाती है। उसी प्रकार परिणामों में अशुद्धता बढ़ती जाने पर अवधिज्ञान भी हीन हो जाता है।
5. प्रतिपाति अवधिज्ञान - जैसे तेल के समाप्त हो जाने पर दीपक प्रकाश देते देते एकदम बुझ जाता है वैसे ही जो अवधिज्ञान प्राप्त होने के कुछ समय बाद एकदम लुप्त (नष्ट) हो जाता है वह प्रतिपाति अवधिज्ञान है।
6. अप्रतिपाति अवधिज्ञान - जो
अवधिज्ञान केवलज्ञान उत्पन्न होने तक रहता है अर्थात् विनष्ट नहीं होता वह अप्रतिपाति अवधिज्ञान है।
हीयमान
प्रतिपातिक अवधिज्ञान
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