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मनोभावों को भी जान लेता है तथा अतीत में किये गये विचार को, भविष्य में किये जाने वाले विचार को तथा वर्तमान में किये जा रहे विचार को, सबको अपना विषय बनाता है। अतः यह त्रिकालग रूपी पदार्थ को जानता है। यह ज्ञान आने के बाद विनष्ट नहीं होता है। विपुलमति मनः पर्यवज्ञानी उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त करता है।
केवल ज्ञान प्रमाण
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केवलज्ञान
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केवलज्ञान - केवल शब्द के विभिन्न अर्थों से इस ज्ञान का समग्र अर्थ समझा जा सकता है। इन अर्थों के आधार पर संक्षेप में व्याख्या इस प्रकार है -
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केवल का अर्थ है एक जिसके उत्पन्न
होने से उपर्युक्त चारों ज्ञान इस एक मात्र ज्ञान में विलीन हो जायें, उसे केवलज्ञान कहते हैं।
केवल का अर्थ है असहाय पर की सहायता से निरपेक्ष-जो ज्ञान इन्द्रिय, मन, देह आदि की सहायता के बिना रूपी - अरूपी सभी वस्तुओं तथा विषयों को प्रत्यक्ष कर देता है, उसे केवलज्ञान कहते हैं।
केवल का अर्थ है विशुद्ध । चारों क्षायोपशमिक ज्ञान शुद्ध हो सकते हैं किन्तु विशुद्ध नहीं। विशुद्ध एक केवलज्ञान ही होता है। अन्य चारों ज्ञान कषाय के अंश सहित होते हैं किन्तु केवलज्ञान कषाय रहित होता है ।
केवलज्ञान का अर्थ है-परिपूर्ण । क्षायोपशमिक ज्ञान किसी भी पदार्थ के सभी पर्यायों को नहीं जान सकते हैं। जो समस्त द्रव्यों के समस्त पर्यायों को जान सके ऐसा परिपूर्ण ज्ञान केवलज्ञान कहलाता है।
केवल का अर्थ है अनन्त । जो अन्य सभी प्रकार के ज्ञानों से श्रेष्ठतम व सीमा रहित है, अनन्त पदार्थों को जानने की शक्ति वाला है तथा उत्पन्न होने पर कभी नष्ट नहीं होता, उसे केवलज्ञान कहते हैं। केवल का अर्थ है निरावरण जिस ज्ञान पर कैसा भी, कोई भी आवरण नहीं हो, जो नित्य और शाश्वत हो व ज्ञानावरणीय कर्मों के सम्पूर्ण क्षय से उत्पन्न हो वह केवलज्ञान है।
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एक जीव को एक साथ एक से लेकर चार ज्ञान हो सकते हैं। यदि
यदि 1 ज्ञान हो तो - केवलज्ञान
यदि 2 ज्ञान हो तो - मति और श्रुत ज्ञान
यदि 3 ज्ञान हो तो - मति, श्रुत और अवधि या मति, श्रुत और मनःपर्यव यदि 4 ज्ञान हो तो - मति, श्रुत, अवधि और मनः पर्यव ज्ञान होते हैं।
एक ही साथ पाँच ज्ञान किसी को नहीं होते है ।