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काम करते करते
3. कर्मजा बुद्धि अभ्यास की पटुता से होने वाली बुद्धि कर्मजा बुद्धि
है।
4. पारिणामिकी बुद्धि - अवस्था अनुभव से प्राप्त होनेवाली बुद्धि वह पारिणामिकी बुद्धि है।
इस प्रकार मतिज्ञान के कुल 336 +4 = 340 भेद हुए है।
अवग्रह
व्यंजनावग्रह
-
श्रुतनिश्रित मतिज्ञान
हा
अर्थावग्रह
औत्पत्तिकी बुद्धि
अपाय
वैनयिकी बुद्धि
श्रुतज्ञान कार्य है। श्रुतज्ञान मतिपूर्वक ही होता है।
मतिज्ञान
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धारणा
कर्मजा बुद्धि
अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान
2. श्रुतज्ञान
शब्द, संकेत या शास्त्र आदि के माध्यम से जो अर्थ ग्रहण किया जाता है उसे श्रुतज्ञान कहते हैं। शब्द आदि सुनना या संकेत आदि देखना मतिज्ञान है लेकिन शब्द संकेत आदि निमित्त से अर्थ का बोध होना श्रुतज्ञान है। जैसे कोई अंग्रेजी में कुछ गा रहा है उसे हम समझते नहीं फिर भी शब्द तो कानों को टकराते है लेकिन जब तक उसका अर्थ बोध नहीं होता तब तक मतिज्ञान और अर्थ का बोध होने पर श्रुतज्ञान होता है। इसलिए मतिज्ञान कारण है और
पारिणामिकी बुद्धि