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________________ अवाय की स्थिति असंख्य समय लगता है। इन्द्रिय और विषय का यह असंख्य समयवाला प्राथमिक संबंध व्यंजनावग्रह है। इसके पश्चात् व्यंजनावग्रह से कुछ ज्यादा व्यक्त किंतु फिर भी अव्यक्त 'शब्द' का ग्रहण अर्थावग्रह है। अर्थावग्रह को अव्यक्त इसलिए कहा जाता है कि इसमें भी जाति, गुण, द्रव्य की कल्पना से रहित वस्तु का ग्रहण यानि बोध होता है। 2. ईहा - ईहा शब्द का सामान्य अर्थ है - चेष्टा या इच्छा। अवग्रह के द्वारा जाने हुए पदार्थ को विशेष रूप से जानने की चेष्टा करना कि जो शब्द सुने हैं वो किसके हैं - तबले के हैं या वीणा के। मृदु शब्द है इसलिए शायद -वीणा के होने चाहिए। 3. अपाय - ईहा के द्वारा जाने हुए पदार्थ का निश्चय हो जाना कि ये शब्द वीणा के ही हैं। ईहा में ये शब्द वीणा के होने चाहिए इस प्रकार ज्ञान होता है जबकि अपाय में यह वीणा के ही है इस प्रकार का निश्चयात्मक ज्ञान होता है। 4. धारणा - अवग्रह, ईहा, अपाय द्वारा प्राप्त ज्ञान स्मृति में संजोकर रख लेना, कालान्तर में कभी भी विस्मृत न होने देना धारणा है। जैसे जबजब वैसी आवाज आवे तो ये वीणा की आवाज है यह निर्णय पूर्व की धारणा के आधार से ही होती है। मतिज्ञान के 28 प्रकार है। ___ अर्थावग्रह, ईहा, अपाय और धारणा ये चारों पाँच इन्द्रिय और मन इन छह से होते हैं, अत: इनके 4 x 6 = 24 भेद होते हैं। ___ व्यंजनावग्रह मन और चक्षु को छोड़कर चार इन्द्रियों से SEol होता है इसलिए उसके चार भेद हैं 24+4=28 तत्वार्थ सूत्र में इन 28 भेदों के साथ प्रत्येक ज्ञान के फिर निम्नलिखित बारह भेद बताए गये हैं । 28 x 12 = 336 भेद होते हैं। धारणा ROO na21
SR No.004055
Book TitleJain Dharm Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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