________________
बिना श्रुत की सहायता के स्वभावरूप से उत्पन्न हो तथा मतिज्ञानावरणीय के विशेष क्षयोपशम से प्राप्त हो। श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के चार प्रकार हैं
श्रुतनिश्रित
अवग्रह
ईहा
अपाय
धारणा
श्रुत-नना
अवग्रह
1. अवग्रह - नाम जाति आदि की विशेष कल्पना से रहित सामान्य रूप वस्तु को ग्रहण करने वाला अव्यक्त ज्ञान अवग्रह कहलाता है। इस ज्ञान में निश्चित प्रतीति नहीं होती कि किस पदार्थ का ज्ञान हुआ है। केवल इतना सा ज्ञात होता है कि “यह कुछ है।" इसके दो भेद है - a) व्यंजनावग्रह और b) अर्थावग्रह व्यंजनावग्रह - इन्द्रियों का पदार्थ के साथ संयोग तथा अव्यक्त, अप्रकट पदार्थ का अवग्रह उसे व्यंजनावग्रह कहते हैं। जैसे शब्द
का कान से टकराना। “कुछ है यह स्पष्ट निर्णय भी यहाँ नहीं होता।
अर्थावग्रह - 'कुछ है' इस प्रकार का ज्ञान। व्यक्त प्रकट पदार्थ के अवग्रह को अर्थावग्रह कहते हैं । जैसे आवाज (शब्दों) को महसूस करना।
व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह किस प्रकार होते हैं अथवा इन्द्रिय का विषय के साथ सम्पर्क होने पर ज्ञान का क्रम कितने धीरे-धीरे आगे बढ़ता है - इसे समझने के लिए दृष्टांत दिया जाता है। एक व्यक्ति गहरी नींद में सोया हुआ है। दूसरा व्यक्ति उसे जगाने के लिए बार-बार आवाज देता है। वह सोया हुआ व्यक्ति पहली बार आवाज देने पर नहीं जागता। दूसरी बार आवाज देने पर भी नहीं जागता। इस प्रकार बार-बार आवाज देने पर जब उसके कान उस ध्वनि-पुद्गलों से पूरी तरह भर जाते हैं, तब वह अवबोध सूचक हुं यह शब्द करता है । ध्वनि-पुद्गलों से कान के आपूरित होने में
प्रथम समय श्रवण
असंख्यात समय पश्चात
AMILIALIST
..2016
20
DEducationinternationa
Per