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6. अभिगम रूचि - आगम सूत्रों को अर्थ सहित अभ्यास करने से जो सम्यक्त्व प्राप्त हो वह अभिगम रूचि सम्यक्त्व है।
7. विस्तार रूचि - छह द्रव्य, नौ तत्व, प्रमाण, नय, निक्षेप आदि का विस्तार पूर्वक अभ्यास करने से होनेवाला सम्यग्दर्शन विस्तार रूचि रूप सम्यक्त्व है।
8. क्रिया रूचि - दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, विनय, समिति, गुप्ति आदि क्रियाओं में भावपूर्वक रूचि क्रिया रूचि सम्यक्त्व कहलाता है।
___9. संक्षेप रूचि - जिस जीव को बौद्ध, सांख्य आदि अन्य दर्शनों में आग्रह नहीं है तथा वह जैन दर्शन को भी यथार्थ नहीं समझता ऐसे आत्मा को केवल मोक्ष में रूचि हो वह संक्षेप रूचि सम्यक्त्व है।
10. धर्म रूचि - तीर्थंकर द्वारा प्ररूपित श्रुतधर्म और चारित्रधर्म में श्रद्धा करना धर्मरूचि रूप सम्यक्त्व है। सम्यक्त्व के लक्षण
असाधारण धर्म को लक्षण कहते हैं। जैसे जीव का असाधारण धर्म उपयोग है, क्योंकि वह जीव के सिवाय किसी में भी नहीं मिलता है, अत: वही उसका लक्षण है। इस प्रकार जिन गुणों के कारण सम्यक्त्व पहचाना जाता है अथवा सम्यक्त्वी में ही जो गुण अवश्य पाये जाते हैं वे सम्यक्त्व के लक्षण कहे जाते हैं। वे लक्षण पाँच हैं। 1. शम, 2. संवेग, 3. निर्वेद, 4. अनुकम्पा और 5. आस्तिक्य
1. शम - सम शब्द के तीन रूप बनते हैं - सम, शम, और श्रम। सम का अभिप्राय है समता अर्थात् सभी प्राणियों को अपने समान समझना। सम का दूसरा अर्थ है - चित्त को विचलित नहीं होने देना। सुख-दुख, हानि-लाभ, एवं अनुकूल-प्रतिकूल दोनों स्थितियों में समभाव रखना। शम का अर्थ है - शांत करना, कषाय या
वासनाओं को शांत करना श्रम का अर्थ है - सम्यक्प्रयास या पुरूषार्थ।
मित्ती से सव्व भूएसु
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