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यथार्थ विश्वास करना। अतः वह यथार्थश्रद्धा जो सत्य तथ्य पूर्ण होने के साथ-साथ मोक्षाभिमुखी हो, जीव की गति-प्रगति मोक्ष की ओर उन्मुख करें वह सम्यग्दर्शन है।
व्यावहारिक दृष्टि से 'तमेव सच्चं निसंकं जं जिणेहिं पवेइयं' वही नि:शंक सत्य है जो सर्वज्ञ जिनेश्वरों ने बताया है ऐसी श्रद्धा करना सम्यग्दर्शन है। देव, गुरू, धर्म इन तीनों के प्रति यथार्थ श्रद्धा करना अर्थात अरिहंत ही मेरे देव है, शुद्ध आचार का पालन करने वाले सुसाधु ही मेरे गुरू है और जिनेन्द्र देव द्वारा प्ररूपित धर्म ही प्रमाण है इस प्रकार के अंतरंग प्रतिति पूर्व के दृढ़ निश्चय को सम्यक्त्व कहा गया है।
श्रद्धा
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दव
किन्तु गहन आध्यात्मिक दृष्टि से जिसे निश्चयदृष्टि भी कहा जाता है इस दृष्टि की अपेक्षा शुद्ध आत्मभाव, आत्मस्वरूप की अनुभूति, प्रतीति, रूचि, यथार्थ विश्वास और उसका दृढ़ श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है।
सम्यग्दर्शन के भेद
शास्त्र
विभिन्न अपेक्षाओं से सम्यग्दर्शन के निम्नलिखित विविध भेद बताये गये हैं :
1. कारक सम्यक्त्व इस सम्यग्दर्शन के प्रभाव से जीव स्वयं तो दृढ़ श्रद्धावान बनकर सम्यक्चारित्र का पालन करता ही है, साथ ही अन्यों को भी प्रेरणा देकर उन्हें भी सदाचरण में प्रवृत्त कराता है।
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गुरु
2. रोचक सम्यक्त्व - रोचक सम्यक्त्व सम्यक्बोध की अवस्था है। जिसमें जो जीव शुभ को शुभ और अशुभ को अशुभ रूप में जानता है । श्रद्धा करता है किन्तु तदनुकूल आचारण नहीं कर पाता। चौथे गुणस्थानवर्ती जीव, जो श्रेणिक महाराजा और कृष्ण वासुदेव की भाँति जिन प्ररूपित धर्म के प्रति दृढ़ श्रद्धाशील होते हैं, तन-मन-धन से जिन शासन की उन्नति करते हैं, जो व्रत, प्राख्यान करने के प्रति उत्सुक तो होते हैं परन्तु अप्रत्याख्यानावरणीय कर्मोदय से एक नवकारसी प भी नहीं कर सकते, उनका सम्यक्त्व रोचक सम्यक्त्व कहलाता है।
3. दीपक सम्यक्त्व - स्वयं मिथ्यात्वी, अभवी होने पर भी दूसरे जीवों में सम्यक्त्व पैदा करनेवाले का दीपक सम्यक्त्व कहलाता है। जैसे दीपक दूसरों को प्रकाश देता है परन्तु उसके तले अंधेरा बना रहता है। इसी प्रकार जिसके उपदेश से अन्य जीव सम्यक्त्व प्राप्त कर लेते है, किन्तु स्वयं सम्यक्त्व से, श्रद्धा से वंचित रहता है, ऐसे जीव को उपचार से दीपक सम्यक्त्व वाला कहा जाता है।
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4. औपशमिक सम्यक्त्व - दर्शन सप्तक (अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माय, लोभ, मिथ्यात्व मोह, मिश्र मोह और सम्यक्त्व मोह) इन कर्म प्रकृतियों के उपशमित (दबाई हुई) होने पर जो
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