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(आठवें व्रत के विषय में - हिंसक शस्त्र प्रदान के लिए) सत्थग्गि-मुसल-जंतग-तण-कट्ठे मंत-मूल-भेसज्जे। दिने दवाविए वा, पडिक्कमे देवसि सव्वं ||24||
शब्दार्थ सत्थग्गि-मुसल-जंतग-तण-कट्ठे - शस्त्र, अग्नि, दिन्ने दवाविए वा - दूसरों को देते हुए और मूसल, चक्की, तृण और काष्ट के विषय में। दिलाते हुए। मंत-मूल-भेसज्जे - मंत्र, मूल तथा औषधि के विषय में। पडिक्कमे देवसि सव्वं - दिन संबंधी लगे
हुए सब दूषणों से निवृत्त होता हूँ।
मुसल
सत्य
भावार्थ : अब आठवें व्रत में लगे हुए अतिचारों की आलोचना करता हूँ। शस्त्र, अग्नि ,
मूसल आदि कूटने के साधन, चक्की आदि दलने, पीसने के साधन, विभिन्न प्रकार के तृण, काष्ठ, मूल
और औषधि आदि (बिना कारण) दूसरों को देते हुए और दिलाते हुए (सेवित अनर्थदंड से) दिवस संबंधी छोटे-बड़े जो अतिचार लगे
अग्गि
जतग
हों
उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ ।।24।।
मंत-मूल-भेसज्जे
तण-कट्ठे
(प्रमादाचरण के लिये) ण्हाणुव्वट्टण-वनग-विलेवणे सद्द-रूव-रस-गंधे। वत्थासण-आभरणे, पडिक्कमे देवसि सव्वं ।।25।।
शब्दार्थ ण्हाण - स्नान करना।
वत्थ - वस्त्र के विषय में। उव्वट्टण-उद्वर्तन - उबटन लगाकर मैल उतारना। आसन - आसन के विषय में। वन्नग - रंग लगाना, चित्रकारी करना, रंगीन चूर्ण। आभरणे - आभूषण के विषय में जो कोई अतिचार
लगा हो। विलेवणे - विलेपन।
पडिक्कमे - प्रतिक्रमण करता हूँ, निवृत्त होता हूँ। सद्द-रूव-रस-गंध - शब्द, रूप, रस और
देवसिअं - दिन सम्बन्धी। गंध के भोगोपभोग के विषय में।
सव्वं - सब दोषों का।
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