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________________ तइए अणुव्वयम्मि/ तेना हड-प्पओगे (तीसरे अणुव्रत के अतिचारों की आलोचना) तइओ अणुव्वयम्मी, थूलग-परदव्व-हरण-विरईओ। आयरियमप्पसत्थे, इत्थ पमाय-प्पसंगेणं ||13|| तेनाहड-प्पओगे, तप्पडिरूवे विरुद्ध-गमणे । कूडतुल-कूडमाणे, पडिक्कमे देवसिअं सव्वं ||14|| शब्दार्थ तइए - तीसरे। तेनाहड - चोर द्वारा लाई हुई वस्तु का अणुव्वयम्मी - अणुव्रत में। प्पओगे - प्रयोग करने से। थूलग - स्थूल। तप्पडिरूवे - असली वस्तु दिखला कर नकली देना। परदव्व-हरण-विरइओ - परद्रव्य हरण की विरुद्धगमणे अ- और राज्य विरुद्ध प्रवृत्ति करना। विरति से दूर हो ऐसा। कूडतुल - झूठा तोल तोलने से। आयरिअं - अतिचार किया हो। कूडमाने - झूठा माप मापने से। अप्पसत्थे - अप्रशस्त भाव से। पडिक्कमे - निवृत्त होता हूँ। इत्थ - यहाँ, अब। देवसिअं- दिन संबंधी दोषों से। पमाए-प्पसंगणं - प्रमादवश। सव्वं - सब। भावार्थ : अब तीसरे अणुव्रत के विषय में (लगे हुए अतिचारों का प्रतिक्रमण किया जाता है।) प्रमाद के प्रसंग से अथवा क्रोधादि अप्रशस्त भावों का उदय होने से स्थूल-अदत्तादान-विरमण व्रत में जो कोई अतिचार दिन में लगे हो उन सबसे में निवृत्त होता हूँ ||13|| ___ इस गाथा द्वारा तीसरे व्रत के पांच अतिचारों का प्रतिक्रमण किया है, ये पाँच अतिचार इस प्रकार हैं 1. चोरी का माल खरीद कर चोर को सहायता पहुंचाना 2. बढ़िया नमूना दिखलाकर उसके बदले में घटिया चीज देना, या मिलावट करके देना। 3. अपने राजा की आज्ञा बिना उसके बैरी के देश में व्यापार के लिये जाना, अथवा चुंगी आदि महसूल दिये बिना किसी चीज को छिपाकर लाना, ले जाना या कूडतुल कूडमाणे मना करने पर भी दूसरे देशों में जाकर राज्य विरुद्ध हलचल करना। 4. तराजू बाट आदि सही-सही न रखकर कम देना। ज्यादा लेना, छोटे-बड़े नाप रखकर न्यूनाधिक लेना देना। ये अतिचार सेवन करने से मुझे दिन भर में जो कोई दोष लगे हों उनसे मैं निवृत्त होता हूँ ।।14।। विद राज्यातिकमा -निषिद्ध वस्तुमा का व्यापार न्यासापहार 79
SR No.004054
Book TitleJain Dharm Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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