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________________ बीए अणुव्वयम्मि कल्या-गौ-भूम्यलिक (दूसरे अणुव्रत के अतिचारों की आलोचना) बीए अणुव्वयम्मी परिथूलग-अलिय-वयण विरइओ। आयरियमप्पसत्थे, इत्थ पमाय-प्पसंगेणं ||11।। सहसा-रहस्स-दारे मोसुवएसे अ कुडलेहे । बीयवयस्स इआरे, पडिक्कमे देवसि सव्वं ||12|| शब्दार्थ बीए - दूसरे। सहसा - बिना विचार किये किसी पर दोष लगाना। अणुव्वयम्मी - अणुव्रत के विषय में। रहस्स - एकान्त में बातचीत करने वाले पर दोष लगाना। परिथूलग-अलिय-वयण-विरईओ - स्थूल दारे - स्त्री की गुप्त बात को प्रकट करना। असत्यवचन की विरति में मोसवएसे - मिथ्या उपदेश अथवा झूठी सलाह देने से। आयरिअ - अतिचार लगा हो। कूडलेहे - और बनावटी लेख लिखना या झुठ लिखने से । अप्पसत्थे - क्रोधादि अप्रशस्त भाव में रहते हुए। बीय-वयसक - दूसरे व्रत के विषय में इत्थ - यहाँ, अब। अइआरे - अतिचारों से। पमाय-प्पसंगेणं- प्रमाद वश। पडिक्कमे देवसि सव्वं - दिन संबंधी लगे हुए सब दोषों से निवृत होता हूँ। भावार्थ : अब दूसरे व्रत के विषय में (लगे हुए अतिचारों का प्रतिक्रमण किया जाता है।) यहाँ प्रमाद के प्रसंग से अथवा क्रोधादि अप्रशस्त भाव का उदय होने से स्थूलमृषावाद विरमण व्रत में जो कोई अतिचार लगा हो उससे मैं निवृत होता हूँ ||11|| 1. बिना विचारे किसी पर दोषारोपण करने से | 2. एकान्त में बातचीत करने वाले पर दोषारोपण करने से। 3. स्त्री की गुप्त व मार्मिक बातों को प्रकट करने से। सहसा-रहस्सदारे 4. असत्य उपदेश देने से। कूडलेहे मोसुवएसे 5. झूठे लेख (दस्तावेज़) लिखने से दूसरे व्रत के विषय में दिन सम्बन्धी छोटे-बड़े जो अतिचार लगे हों, उन सबसे मैं निवृत होता हूँ ||12|| SORT 78
SR No.004054
Book TitleJain Dharm Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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