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सुवर्ण
चतष्पद
4. सुवर्ण - सोने के आभूषण आदि। 5. धन - नगद रुपया व बैंक बैलेंस।
धान्य 6. धान्य - सभी प्रकार के अन्न धान्य।
धन 7. द्विपद - दो पाँव वाले दास-दासी आदि।
द्विपद 8. चतुष्पद - हाथी, घोड़ा, गाय आदि पशु। 9. कुप्य - सोना, चाँदी आदि के अतिरिक्त अन्य समस्त वस्तुएं। __ अपनी स्वीकृत परिग्रह मर्यादा से अधिक परिमाण में लाभ हो तो उस धन का स्वयं उपयोग नहीं करके सात धर्म क्षेत्रों में सद्व्यय करे पुण्य का उपार्जन करे यही श्रावक का आदर्श है। 6. दिशापरिणाम व्रत :
___ पांचवे अणुव्रत में सम्पत्ति आदि की मर्यादा की जाती है। व्यक्ति सम्पत्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात दौड़-धूप करता है। प्रस्तुत व्रत में श्रावक उन प्रवृत्तियों का भौगोलिक क्षेत्र सीमित करता है। वह यह प्रतिज्ञा ग्रहण करता है - चारों दिशाओं व ऊपर-नीचे (यानि छहो दिशाओं में तथा उपलक्षण से चारों विदिशाओं में अर्थात् दशों दिशाओं में) निश्चित सीमा से आगे बढकर मैं किन्चित् मात्र भी स्वार्थमूलक
पिहलाअतिचार
पेड़, पहाइविमान आदि मैं ऊंचाई का विस्तार तय करके मर्यादा का उल्लंघन
दूसरा अतिचार पीचे तलघरयाकये में उतरने का प्रमाण
का उल्लंघन
पूर्व
पश्चिम
तीसरा अतिचार
चौथा अतिचार
एक दिशा कापरिमाण দিল।
तिग्छ आई वाहन या पैदल जाने की मर्यादा का उल्लंघन
विस्मृति होने से मर्यादा का
छल्लंघन
एकदिशा का परिमाण
बढ़ाना माम
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