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________________ कन्यालीक यह गाय बहुत दुधारू है बाल्टी भर दूध देती है। 2. सत्याणुव्रत अथवा स्थूल मृषावाद विरमण व्रत :- झूठ बोलने से बचना एवं यथातथ्य कहना ही सत्य अणुव्रत है। स्वार्थवश अथवा दूसरों के लिए क्रोध या भय से दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाले असत्य वचन न तो स्वयं बोलना और न दूसरों से बुलवाना। प गृहस्थ को किसी के जीवन में बड़े अनर्थ की वजह बन सकने वाले निम्न पांच कारणों से असत्य भाषण का निषेध किया गया है - नाजकन्या है, 1. कन्या के संबंध में :- वर-कन्या के संबंध में कम दूध देने वाली गा असत्य जानकारी देना। 2. गाय के संबंध में :- पशु आदि के क्रय-विक्रय हेतु असत्य जानकारी देना। 3. भूमि के संबंध में :- भूमि अर्थात् पृथ्वी के पावालीक स्वामित्व के संबंध में तथा पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पति, फल, वृक्ष खाद्य पदार्थ आदि के संबंध में झूठ बोलना। 4. न्यासापहार :- किसी की अमानत, धरोहर रखकर वस्तु हड़प जाना, उसके सम्बन्ध में झूठ बोलना। 5. कूट-साक्षी :- किसी भी प्रकार के प्रलोभन, | भय, स्वार्थ आदि के वश झूठी साक्षी देना। न्यायाधीश के समक्ष झूठा बयान देना। झूठी निंदा व झूठी प्रशंसा, मिथ्या आरोप आदि देना। तुमने मुझे कोई धन की पेटी रखने को नहीं दी थी। भय्यालाका च्यामारहार यह खेत बहुत उपजाऊ है। फटकमाली जज साहस, इस व्यक्ति मे किसी की हत्या नहीं की। BARAAT इस अणुव्रत के पांच अतिचार या दोष निम्न है :1. सहसाभ्याख्यान :- सहसा अर्थात् किसी प्रकार का आगे पीछे सोचे बिना एकदम किसी पर दोषारोपण करना, किसी के प्रति गलत धारणा पैदा करना आदि। 2. रहस्याभ्याख्यान :- किसी की गुप्त बात को प्रकट करना। मोसुवएसे 3. स्वदारामंत्र भेद :- पति-पत्नी का एक-दूसरे की या मित्र की गुप्त बातों को किसी के सामने प्रकट करना। 4. मिथ्योपदेश :- लोगों को बहकाना, सच्चा-झूठा सहसा-रहस्सदारे 1461
SR No.004054
Book TitleJain Dharm Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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