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________________ अतिभार वध 2. वध - किसी प्राणी को प्राणों से रहित छविच्छेद करना, निर्दयता से पीटना, संताप पहुँचाना आदि। 3. छविच्छेद - किसी जीव के अंगोपांग काटना, किसी की आजीविका छीनना, मजदूरी काटना आदि। 4. अतिभार - किसी भी प्राणी या मनुष्य पर भक्तपान व्यवच्छेद उसकी शक्ति से अधिक भार लादना, अतिश्रम लेना या शोषण करना। 5. अन्नपान निरोध - अपने आश्रित जीवों के भोजन, पानी में बाधा डालना, पशुओं को या मनुष्यों को पूरा भोजन न देना, समय पर खाना न देना आदि। इस जगत में दो प्रकार के जीव है - 1. सूक्ष्म और 2. बादर। सूक्ष्मजीव संपूर्ण जगत में भरे है। वे आंखों से दिखाई नहीं देते। और जो आंखों से दिखाई देते है, वे बादर जीव हैं। इनके भी दो प्रकार है - 1. स्थावर - जो एक जगह स्थिर रहते है जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति 2 . त्रस - बेइन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीव। जो अपने सुख-दुःख के लिए इधर-उधर हलन-चलन करते है। गृहस्थ सूक्ष्म हिंसा का त्याग नहीं कर सकता है। स्थावर जीवों की हिंसा को मर्यादित कर सकता है। संकल्पी हिंसा हिंसा के चार रूप है :1. संकल्पी हिंसा - मारने के इरादे से निर्दोष जीवों की । हिंसा करना। 2. आरम्भी हिंसा - घर, भोजन आदि आवश्यक कार्यों | उद्योगिनी हिंसा के लिए होने वाली हिंसा। 3. उद्योगिनी हिंसा - व्यापार, उद्योग आदि के लिए आरम्भी हिंसा होने वाली हिंसा। 4. विरोधिनी हिंसा - किसी ने आक्रमण किया तो अपनी आत्मरक्षा के लिए उसका प्रतिकार करना। इनमें भी श्रावक केवल संकल्पी हिंसा का त्याग करता है तथा अन्य तीनों प्रकार की हिंसा की मर्यादा करता हैं। विरोधिनी हिंसा 45
SR No.004054
Book TitleJain Dharm Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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