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पिण्डस्थ ध्यान के रूप में इन पाँचों धारणाओं का अभ्यास करने वाले साधक का उच्चाटन, मारण, मोहन, स्तम्भन आदि सम्बन्धी दुष्ट विद्यायें और मांत्रिक शक्तियाँ कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती हैं । डाकिनीशाकिनियाँ, क्षुद्र योगिनियाँ, भूत, प्रेत, पिशाचादि दुष्ट प्राणि उसके तेज को सहन करने में समर्थ नहीं हैं । उसके तेज से वे त्रास को प्राप्त होते हैं । सिंह, सर्प आदि हिंसक जन्तु भी स्तम्भित होकर उससे दूर ही रहते
है।
औरहाणभो सिमा
णमो अति
णमो आयरिया
णमा:
पदस्थ ध्यान
इस ध्यान का मुख्य आलम्बन शब्द है। पवित्र मंत्राक्षर, बीजाक्षर अथवा आगम के पदों का जो ध्यान किया जाता है वह पदस्थ कहलाता है।
पद अर्थात् पदवी। जो पदवी को धारण करता है वह पदस्थ कहलाता है। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पांच पदवियां है। इन पदवीधरों का ध्यान करना पदस्थ ध्यान है। इन पदस्थ महापुरुषों के नाम का स्मरण करना अथवा उन महापुरुषों के पवित्र नाम सूचक अक्षरों शब्दों का ध्यान करना यह बात इस पदस्थ ध्यान में कही गई है।
यह ध्यान अनेक प्रकार के मंत्राक्षर एंव बीजाक्षरों के आलम्बन से किया जा सकता है, जैसे : ऊँ अर्हम् नमः का अखंडजाप, ऊँ नमो अरिहंताणं
ॐकार में पोकर इन आठ अक्षर के पद का ध्यान, मातृका पद ध्यान अर्थात् मूल अक्षरों का ध्यान जिसे ब्रह्म अक्षर कहा जाता है, नवपद जी का ध्यान आदि।
नवपद का ध्यान: हृदय में आठ पंखुड़ियों का कमल और उसकी एक-एक पंखुडी पर नवपद जी का एक-एक पद रखना अर्थात् बीच में कर्णिका में अरिहंत, फिर उसके सिर पर सिद्ध, पार्श्व में आचार्य, नीचे उपाध्यायजी और पार्श्व में साधु तथा विदिशाओं में दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप - ये पद रखकर उसका जाप करना। अथवा इनमें से एक-एक पद में लक्ष्य रखकर ध्यान करना। सिद्धचक्र पद का मंडल सिद्धचक्रजी के गटे पर से धारना। इस तरह हृदय में
णमोअरिहंतागी सिद्धचक्र की कल्पना करके जाप या ध्यान करना। यह अपराजित नामक महामंत्र है | जिस पद का ध्यान करते हों, उस पद में आत्म उपयोग तदाकार में परिणत होने पर उसमें जितने समय तक उपयोग की स्थिरता रहे उतनी देर तक हम उस पद को धारण करने वाले महापुरुष की स्थिति का अनुभव करते हैं। इस ध्यान को अधिक
अष्टदल कमल में नवपद ध्यान शक्तिशाली बनाने के लिए जब-जब जिस-जिस पद के ध्यान में हमारा लक्ष्य पिरोया हुआ हो उस-उस वक्त मन में ऐसी भावना दृढ करते रहना कि वह पदवाचक मैं हूं।
णमो
सिध्दाण
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पदम दबडे मंगलं
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आयरियाण णमो
मंगलाण च सव्वति
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