SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसमें मुख्य रुप से धर्म का स्वरुप, साधु की भिक्षाचर्या 52 अनाचारों का परिचय, पांच महाव्रत, षड्जीवनिकाय का निरुपण, भाषाशुद्धि, विनय-समाधि, आदि का दस अध्ययनों में सुंदर विवेचन हुआ है। विषय को स्पष्ट करने के लिए उपमाओं, दृष्टातों का भी अनुसरण हुआ है। ग्रंथ के अंत में दो चूलिकाएं भी है जिसमें साधु का चर्या, गुणों और नियमों का वर्णन किया गया है। 4. . पिण्डनिर्युक्ति और ओघनिर्युक्ति इन दोनों को मूल सूत्र माना जाता है। कोई आचार्य ओघनिर्युक्ति को और कोई दोनों को मूल सूत्र मानते हैं। पिंड नियुक्तिः पिण्ड का अर्थ है - भोजन । श्रमण के ग्रहण करने योग्य आहार को पिण्ड कहा गया है। प्रस्तुत ग्रंथ में साधु के गोचरी के 42 दोषों का विवेचन है। इसके रचयिता भद्रबाहु स्वामी माने जाते है। ओघनियुक्ति : ओघ का अर्थ सामान्य या साधारण है। इसमें बिना विस्तार किए केवल सामान्य में साधु आचार का कथन किया गया है अतः इसका नाम ओघनिर्युक्ति हैं। इसमें श्रमणों के आचार-विचार जैसे प्रतिलेखना, पिण्डद्वार, उपधि, आलोचना द्वार, विशुद्धि द्वार आदि का निरुपण किया गया हैं। इस निर्युक्ति के रचयिता भद्रबाहु स्वामी माने जाते हैं। छेद सूत्र : प्रस्तुत आगम में साधु-साध्वियों के जीवन से संबद्ध आचार विषयक नियमों का विश्लेषण हैं। उसे चार वर्गों में विभाजित किया गया है। 1. उत्सर्ग 2. अपवाद 3. दोष और 4. दोषशुद्धि (प्रायश्चित) 1. उत्सर्ग याने किसी विषय का सामान्य विधान 2. अपवाद का अर्थ है, परिस्थिति विशेष की दृष्टि से संयम की रक्षा के लिए विशेष विधान अथवा छूट। 3. दोष यानि उत्सर्ग या अपवाद का भंग। 4. दोष शुद्धि (प्रायश्चित) अर्थात् व्रतभंग होने पर समुचित दंड लेकर उसका शुद्धिकरण करना। यह आगम एकांत में योग्यता प्राप्त केवल कुछ विशिष्ट शिष्यों को ही पढाया जाता है। नियम भंग हो जाने पर साधु-साध्वियों द्वारा अनुसरणीय अनेक प्रायश्चित विधियों का इनमें विश्लेषण है। छेद सूत्रों के अन्तर्गत वर्तमान में 1. दशाश्रुत स्कन्ध 2. बृहत्कल्प 3. व्यवहार 4. निशीथ 5. महानिशीथ और 6. जीतकल्प ये छह माने जाते है। इनमें महानिशीथ और जीतकल्प को श्वेताम्बर स्थानकवासी और तेरापंथी नहीं मानते हैं। वे चार छेद सूत्रों को ही मानते हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदाय में प्रस्तुत छह छेद सूत्रों को मानते है। 1. दशाश्रुत स्कन्ध : प्रस्तुत छेद सूत्र में जैनाचार से संबंधित दस अध्ययन होने से इसे दशाश्रुत स्कंध कहते है। इसमें असमाधिस्थान जैसे जल्दी-जल्दी चलना, बिना पूंजे रात्रि 'चलना, गुरुजनों का अपमान करना, निंदा का आदि बीस स्थानों का वर्णन है तथा शबल, नियाणा, 33 आशातना, श्रावक की 11 प्रतिमा (पडिमा), साधु की 12 पडिमाएं, पर्युषण कल्प आदि का विवेचन है। साथ ही भगवान महावीर की जीवनी 15 www.janelibrary.org
SR No.004054
Book TitleJain Dharm Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy